Lohri 2020: प्राचीन लोहड़ी में निभाई जाती थी ये परंपराएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jan, 2020 08:54 AM

lohri 2020

ठंड के साथ वर्ष की शुरूआत में सबसे पहला त्यौहार आता है ‘लोहड़ी’। जो लोग मिलजुल कर मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की सबसे अधिक धूम रहती है। किसान आने वाली फसल के लिए शुभ कामनाएं करते हैं।

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Happy lohri: ठंड के साथ वर्ष की शुरूआत में सबसे पहला त्यौहार आता है ‘लोहड़ी’। जो लोग मिलजुल कर मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की सबसे अधिक धूम रहती है। किसान आने वाली फसल के लिए शुभ कामनाएं करते हैं। मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व रात को लोहड़ी जला कर मनाई जाती है। हर वर्ग और जाति के विभिन्न रीति-रिवाज भी इस त्यौहार से जुड़े हुए हैं जो परिवार में भरपूर खुशियां लेकर आते हैं। 

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कैसे मनाते हैं पर्व? 
भारत में हर त्यौहार के साथ विभिन्न कथाएं और परंपराएं जुड़ी होती हैं। इसी तरह पंजाब में दुल्ला भट्ठी को ‘सुंदर मुंदरिए, तेरा कौन विचारा....दुल्ला भट्ठीवाला’ गीत गाकर याद किया जाता है।

जिन परिवारों में लड़के की नई शादी हुई हो या बच्चे का जन्म हुआ हो वहां अपने सगे संबंधियों के साथ मिलजुल कर लोहड़ी जलाई जाती है। मायके परिवार से नवविवाहित लड़कियों के ससुराल में मूंगफली, रेवड़ी, गजक, गुड़, खोये का भुग्गा, कपड़े, फल इत्यादि उपहार के रूप में भेजे जाते हैं।  घर आने वाले मेहमानों को भी लोहड़ी से संबंधित वस्तुएं बांटी जाती हैं। लोहड़ी से कई दिन पूर्व ही बच्चे घर-घर जाकर ‘सुंदर मुंदरिए’ गीत गाकर लोहड़ी मांगना शुरू कर देते हैं। 

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क्यों पड़ा ‘लोहड़ी’ नाम ?
पौष माह के अंतिम दिन सूर्यास्त के बाद रात्रि में लोहड़ी जलाई जाती है। कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग सहायक सिद्ध होती है। इसे मौसमी पर्व भी कहा जाता है जिसमें ‘ल’ से लकड़ी+‘ओह’ से गोहा यानि सूखे उपले को जला कर ‘ड़ी’ यानि मीठी रेवड़ी को खाया जाता है। इसके साथ ही मूंगफली और तिल की गुड़ और चीनी की गजक, मूंगफली, तिलभुग्गा, चिड़वे, मक्की के दाने व मूली को जलाई गई लोहड़ी की आग पर से ‘वारना’ करके बांटे और खाए जाते हैं। 

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क्या थी पुरानी परम्पराएं ? 
बदलाव प्रकृति का नियम है। कुछ वर्ष पूर्व जैसे त्यौहार मनाए जाते थे। आज उनका वह स्वरूप नहीं देखने को मिलता है। लोहड़ी बांटी जाती थी, लेकिन अब शगुण लेने का रिवाज हो गया है, जिन परिवारों में पहली लोहड़ी होती थी वह अपने घर लोहड़ी मांगने के लिए आने वाले बच्चों को तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, पिन्नियां, उपले, खजूर और पैसे आदि खुश होकर देते थे। खाने में सरसों का साग और मक्की की रोटी परोसी जाती थी। मीठे में गन्ने के रस में बनी हुई खीर होती थी। लोहड़ी पर घर में सबके साथ मिलजुल कर ढोलक की थाप पर गिद्दा/भंगड़ा डालकर रात को मनाई जाती थी। ‘लोहड़ी’ की आग में से दहकते कोयला अपने घर लाना शुभ शगुन माना जाता था। अब घर की बजाय पैलेस या होटल में दिन या रात को डी.जे. की धुन पर नाच-गाकर लोहड़ी मनाई जाती है। अब गली-मोहल्लों में घरों के बाहर या खुले आंगन में लोहड़ी नहीं दिखती। 

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लोहड़ी थीम पर काटे जाते हैं केक 
बेकरी वाले बताते हैं कि आजकल किसी भी खुशी के अवसर पर केक काटना पसंद किया जाता है। त्यौहार की थीम को प्रमुख रखकर ही जन्मदिन और एनिवर्सरी पर केक बनवाए जाते हैं। केक पर पतंग, ढोलक, आग सेंकते लोग व नृत्य करते डी.जे. का संगीत बजते दिखाया जाता है।

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