यहां विराजमान हैं सिंधिया परिवार की कुलदेवी, दशहरे के दिन होता है खास पूजन

Edited By Updated: 28 Sep, 2022 02:35 PM

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ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक जयाजीराव सिंधिया द्वारा लगभग 140 वर्ष से भी पूर्व स्थापित करवाया गया श्री महाकाली देवी की अष्टभुजा महिषासुर मर्दिनी रूपी माता के मंदिर को वर्तमान में मांढरे वाली माता के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है यहां जो

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ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक जयाजीराव सिंधिया द्वारा लगभग 140 वर्ष से भी पूर्व स्थापित करवाया गया श्री महाकाली देवी की अष्टभुजा महिषासुर मर्दिनी रूपी माता के मंदिर को वर्तमान में मांढरे वाली माता के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है यहां जो भी श्रद्धालु मन्नत लेकर पहुंचता है, मां उसकी हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्रि महोत्सव में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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शहर के ऐतिहासिक मंदिरों में मांढरे वाली माता का मंदिर भी शामिल है। कंपू क्षेत्र के कैंसर पहाड़ी पर बना यह भव्य मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से तो खास है ही बल्कि यहां विराजमान अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी मां महाकाली की प्रतिमा भी बेहद अद्भुत व दिव्य है। बताया जाता है कि इस मंदिर को लगभग 140 वर्ष से भी पूर्व आनंदराव मांढरे जो कि जयाजीराव सिंधिया की फौज में कर्नल के पद पर थे, के कहने पर ही तत्कालीन सिंधिया शासक ने बनवाया था। यही कारण है आज भी इस मंदिर की देखरेख और पूजा-पाठ का दायित्व मांढरे परिवार निभा रहा है। मांढरेवाली माता के इर्द-गिर्द अनेक अस्पताल हैं, जहां उपचार के लिए आने वाले मरीजों के परिजन मां से मन्नतें मांगते हैं। कुछ लोग यहां मन्नत पूरी होनी की कामना से यहां घंटियां चढ़ाते हैं तो कुछ धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर दोबारा मां का आशीर्वाद लेते आते हैं। 
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सिंधिया परिवार की कुलदेवी: 
अष्टभुजा वाली महाकाली मैया सिंधिया राजवंश की कुल देवी हैं। इस वंश के लोग जब भी कोई नया कार्य करते हैं तो सबसे पहले मंदिर मात्था टेकने आते हैं। विरासतकाल में इस मंदिर साढ़े को राजवंश द्वारा करीबन साढ़े 13 बीघा भूमि प्रदान की गई थी। मंदिर की हर बुनियादी ज़रूरत को सिंधिया वंश द्वारा पूरा किया जाता है। बताया जाता है कि जयविलास पैलेस और मंदिर का मुख आमने-सामने है। लोक मत है कि प्राचीन समय में जयविलास पैलेस से एक बड़ी दूरबीन के माध्यम से माता के दर्शन प्रतिदिन सिंधिया शासक किया करते थे। मंदिर के व्यवस्थापक मांढरे परिवार के अनुसार इस मंदिर पर लगे शमी के वृक्ष का प्राचीन काल से सिंधिया राजवंश द्वारा दशहरे के दिन पूजन किया जा रहा है। आज भी पारंपरिक परिधान धारण कर सिंधिया राजवंश के प्रतिनिधि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने बेटे तथा व सरदारों के साथ यहां दशहरे पर मात्था टेकने और शमी का पूजन करने आते हैं। 
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