Edited By Sarita Thapa,Updated: 01 Dec, 2025 03:19 PM

हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मत्स्य द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के प्रथम अवतार, मत्स्य अवतार को समर्पित है।
Matsya Dwadashi : हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मत्स्य द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के प्रथम अवतार, मत्स्य अवतार को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि मत्स्य रूप धारण कर भगवान ने प्रलयकाल में धर्म, वेदों और प्रथम मानव मनु की रक्षा की थी। इस शुभ दिन पर विशेष पूजा और स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो आइए जानते हैं मत्स्य द्वादशी के दिन कौन से स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
मत्स्य द्वादशी के दिन करें इस स्तोत्र का पाठ
श्रीगणेशाय नमः ।
नूनं त्वं भगवान्साक्षाद्धरिर्नारायणोऽव्ययः ।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥ १॥
नमस्ते पुरुषश्रेष्ठ स्थित्युत्पत्त्यप्ययेश्वर ।
भक्तानां नः प्रपन्नानां मुख्यो ह्यात्मगतिर्विभो ॥ २॥
सर्वे लीलावतारास्ते भूतानां भूतिहेतवः ।
ज्ञातुमिच्छाम्यदो रूपं यदर्थं भवता धृतम् ॥ ३॥
न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं मृषा भवेत्सर्वसुहृत्प्रियात्मनः ।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सतामदीदृशो यद्वपुरद्भुतं हि नः ॥ ४॥
इति श्रीमद्भागवतपुराणान्तर्गतं मत्स्यस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

मत्स्य द्वादशी के दिन करें इस स्तोत्र का पाठ
सर्वोच्च कृपा की प्राप्ति
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम रूप हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने वाले भक्त पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है।
संकटों से रक्षा
मत्स्य भगवान ने ही महाप्रलय के दौरान संपूर्ण संसार और धर्मग्रंथों की रक्षा की थी। इसलिए, इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन के बड़े से बड़े संकट, भय और चिंताएँ दूर हो जाती हैं और वह सुरक्षित रहता है।
अभय और शांति
मत्स्य देव ने प्रलय के भय को समाप्त किया था, इसलिए यह स्तोत्र भक्तों के मन से डर और मानसिक अशांति को खत्म कर उन्हें निर्भीक बनाता है।
इच्छापूर्ति और सौभाग्य
माना जाता है कि सच्ची श्रद्धा से इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी सकारात्मक मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसके सौभाग्य तथा सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

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