Edited By Jyoti,Updated: 11 Jun, 2021 10:02 AM
बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर एक गाड़ी आकर खड़ी हुई। एक सूट-बूटधारी युवक गाड़ी से उतरा और ‘कुली! कुली’ पुकारना शुरू किया, हालांकि सामान उसके पास कुछ ज्यादा नहीं था।
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बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर एक गाड़ी आकर खड़ी हुई। एक सूट-बूटधारी युवक गाड़ी से उतरा और ‘कुली! कुली’ पुकारना शुरू किया, हालांकि सामान उसके पास कुछ ज्यादा नहीं था। कुली तो नहीं मिला, मगर एक अधेड़ उम्र का आदमी, मामूली दोहातियों जैसे कपड़े पहने उसके पास आ गया। युवक ने उसे कुली समझ लिया।
बोला, ‘‘तुम लोग बड़े सुस्त होते हो। ले चलो इसे जल्दी।’’
उस आदमी ने सामान उठा लिया और युवक के पीछे-पीछे चल दिया। घर पहुंचकर वह सामान रखवाकर मजदूरी देने लगा। वह आदमी बोला, ‘‘धन्यवाद, इसकी जरूरत नहीं है।’’
‘क्यों?’
युवक ने ताज्जुब से पूछा। उसी वक्त युवक के बड़े भाई घर में से निकले और उन्होंने उस आदमी को प्रणाम किया। जब युवक को मालूम हुआ कि जिनसे वह सामान उठवाकर लाया है वे बंगाल के प्रतिष्ठित विद्वान श्री ईश्वरचंद्र विद्यासागर हैं तो वह उनके पैरों पर गिर पड़ा। विद्यासागर बोले, ‘‘मेरे देशवासी फिजूल का अभिमान छोड़कर यह समझें कि अपना काम अपने हाथों करना कितने गौरव की बात है और स्वावलम्बी बनें, यही मेरी असली मजदूरी होगी।’’ —रमेश जैन