Edited By Sarita Thapa,Updated: 07 Nov, 2025 03:48 PM

एक बार एक पिता अपने दस साल के बेटे को खेल के मैदान में ले गया। उसने एक गेंद फैंकी और खेल का नियम यह था कि लड़के को गेंद वापस लाकर अपने पिता को देना है। मैदान खिलौनों से भरा था।
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Motivational Story: एक बार एक पिता अपने दस साल के बेटे को खेल के मैदान में ले गया। उसने एक गेंद फैंकी और खेल का नियम यह था कि लड़के को गेंद वापस लाकर अपने पिता को देना है। मैदान खिलौनों से भरा था। रास्ते में, लड़के का ध्यान एक खिलौने की तरफ आकॢषत होता है और वह उसके साथ खेलना शुरू कर देता है। तब उसके पिता उसे गेंद के बारे में याद दिलाने के लिए आवाज लगाते हैं। वह खिलौने को छोड़कर फिर से गेंद के पीछे दौड़ना शुरू कर देता है।

खेल के मैदान में अन्य बच्चे भी थे। इस बार लड़के को एक और आकर्षक खिलौना मिल जाता है और वह उससे खेलना शुरू कर देता है। तभी एक ताकतवर बच्चा आता है और उससे खिलौना छीन लेता है। इस पर लड़का रोने लगता है। अगली बार, लड़का खुद ही दूसरे छोटे बच्चे से खिलौना छीन लेता है। पूरे खेल में खिलौनों के लिए बच्चों के बीच झगड़े होते रहते हैं। इस दौरान पिता बेटे के ठीक पीछे खड़ा रहता है लेकिन उस लड़के के लिए, जो खिलौनों में खोया हुआ है, उसके पिता बहुत निकट होकर भी बहुत दूर हैं।
कहानी हमें यह समझने में मदद करती है, जब श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘भगवान सभी के भीतर एवं बाहर स्थित हैं, चाहे वे चर हों या अचर। वे सूक्ष्म हैं और इसलिए वे हमारी समझ से परे हैं। वे अत्यंत दूर हैं लेकिन वे सबके निकट भी हैं।’’

उपरोक्त कहानी में पिता की तरह, वह (श्रीकृष्ण) हमारे जीवन की पूरी यात्रा में ठीक हमारे पीछे हैं और हमें बस पीछे मुड़कर देखना है। इसके लिए जब हम दुनियावी आकर्षणों में खो जाते हैं, प्रभु विभिन्न अनुभव भेजकर हमारी सहायता करते हैं। हमें याद दिलाने के लिए वह कठिन परिस्थितियां देते हैं जैसे पिता लड़के पर चिल्लाते हैं।
जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह समझ के बाहर हैं, तो इसका मतलब यह है कि हम हमारी इंद्रियों की सीमाओं के कारण उनको समझ नहीं पाते हैं। वे अनुभवों के माध्यम से प्राप्त हो सकते हैं लेकिन व्याख्या के माध्यम से नहीं। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसने कभी नमक या चीनी नहीं चखी, कोई भी व्याख्या उनके स्वाद को समझने में मदद नहीं करेगी। उनके स्वाद को समझने का एकमात्र तरीका उनको चखना है यानी जागरूकता के साथ उनका अनुभव करना है।
