Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Jul, 2025 04:00 AM

स्वर्ग-मोक्ष की फसल
स्वर्ग-भूमि सुंदर है, पर उपजाऊ नहीं, जबकि मानव-भूमि की मिट्टी काली है, मगर उपजाऊ है। मानव-भूमि की काली मिट्टी में कोई ‘रत्नत्रय’ के बीज डाल दे, तो स्वर्ग-मोक्ष की फसल लहलहा
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स्वर्ग-मोक्ष की फसल
स्वर्ग-भूमि सुंदर है, पर उपजाऊ नहीं, जबकि मानव-भूमि की मिट्टी काली है, मगर उपजाऊ है। मानव-भूमि की काली मिट्टी में कोई ‘रत्नत्रय’ के बीज डाल दे, तो स्वर्ग-मोक्ष की फसल लहलहा उठती है। मनुष्य नीचे रहता है, लेकिन उसके विचार उच्च होते हैं, यही कारण है कि वह मरकर ऊपर जाता है। अगर मनुष्य अपने काम और आचरण ऊंचा न रखें, तो फिर वह मरकर नीचे से भी नीचे जाता है।

जीवन फूल जैसा
तुम भगवान के चरणों में फूल चढ़ाने जाओ, तो इस चक्कर में मत पड़ना कि कौन-सा फूल चढ़ाऊं ? गुलाब का फूल चढ़ाऊं या चमेली का चढ़ाऊं ? बस कोई भी फूल लेना और चढ़ा देना। दरअसल, फूल चढ़ाते समय केवल इतना ही विचार करना कि आदमी का जीवन फूल जैसा होना चाहिए। जीवन फूल जैसा कोमल होगा, तो भगवान के चरणों और गले में भी जगह मिल सकती है।

पृथ्वी पर स्वर्ग
इतना ही नहीं, भगवान अपने सिर पर भी स्थान दे सकते हैं, बशर्ते कि हम फूल जैसे कोमल, सुंदर और सुगंधित बनें। कोई धर्म बुरा नहीं है, बल्कि सभी धर्मों में कुछ बुरे लोग जरूर हैं जो अपने स्वार्थों की खातिर धर्म की आड़ में अपने गोरख-धंधे और नापाक इरादे जाहिर करते रहते हैं। अगर हम इन थोड़े से बुरे लोगों के दिलों को बदल सकें, उन्हें सही राह पर चला सकें और नेक इंसान बनाकर जीना सिखा सकें तो यकीनन सच मानिए यह पूरी पृथ्वी स्वर्ग में तबदील हो जाएगी।

धर्म पगड़ी नहीं, चमड़ी है
धर्म मरहम नहीं, बल्कि टॉनिक है इसे बाहर मलना नहीं, बल्कि पी जाना है। कितना बड़ा आश्चर्य है धर्म के लिए लड़ेंगे-मरेंगे, लेकिन उसे जीएंगे नहीं। धर्म पगड़ी नहीं, जिसे घर से दुकान के लिए चले तो पहन लिया और दुकान पर जाकर उतार कर रख दिया। धर्म तो चमड़ी है, जिसे अपने से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म तो आत्मा का स्वभाव है। धर्म के माने प्रेम, करुणा और सद्भावना है। उसका प्रतीक फिर चाहे राम हो या रहीम, बुद्ध हो या महावीर, कृष्ण हो या करीम, सबकी आत्मा में धर्म की एक ही आवाज होगी। धर्म दीवार नहीं, द्वार है लेकिन दीवार जब धर्म बन जाती है तो अन्याय और अत्याचार को खुलकर खेलने का अवसर मिल जाता है। फिर चाहे वह दीवार मंदिर की या मस्जिद की ही क्यों न हो?
