Nirjala Ekadashi 2021- ‘निर्जला एकादशी व्रत’ के पुण्य में वृद्धि करेगी ये जानकारी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Jun, 2021 08:44 AM

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सनातन धर्म में यज्ञ, अनुष्ठान, जप, तप, दान, देव-पूजा व व्रतों का विशेष महत्व है। सभी प्रकार के व्रतों का सुंदर फल कहा गया है परंतु व्रतों में एकादशी व्रत की तथा एकादशियों में निर्जला एकादशी

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Nirjala Ekadashi 2021- सनातन धर्म में यज्ञ, अनुष्ठान, जप, तप, दान, देव-पूजा व व्रतों का विशेष महत्व है। सभी प्रकार के व्रतों का सुंदर फल कहा गया है परंतु व्रतों में एकादशी व्रत की तथा एकादशियों में निर्जला एकादशी व्रत की विशेष महिमा है। भगवान विष्णु को अति प्रिय है एकादशी व्रत। भगवान विष्णु ने कहा है कि तिथियों में मैं एकादशी तिथि हूं इसीलिए वैष्णव जनों के लिए एकादशी व्रत विष्णु स्वरूप है। पूर्व काल में आतातायी मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट हुई एक दिव्य कन्या और मुर दैत्य के बीच युद्ध हुआ जिसकी हुंकार मात्र से ही मुर दैत्य भस्म हो गया। 

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Nirjala Ekadashi Vrat 2021- एकादशी देवी के द्वारा मुर दैत्य का वध करने से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए  और उसे  ‘एकादशी देवी’ कहकर पुकारा तथा वर देते हुए कहा, ‘‘हे देवी एकादशी, तुम्हारी गणना तिथियों में होगी। तुम तिथियों में श्रेष्ठ एकादशी तिथि कहलाओगी। तुम सभी विघ्नों का नाश करने वाली, धन, धर्म, मोक्ष तथा सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी होगी। जो तुम्हारी उपासना, व्रत करेगा उसके सभी प्रकार के पापों का नाश होगा। वह जीव सहज ही मेरे परम धाम वैकुंठ को प्राप्त होगा। तुम्हारे भक्त मेरे ही भक्त कहलाएंगे। भगवान ने एकादशी व्रत (संकल्प) को व्रतों का राजा कहा है। 

Nirjala ekadashi kab hai- एक माह में दो पक्षों (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) में दो एकादशी होती हैं इस प्रकार 1 वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं विभिन्न नक्षत्रों का योग होने पर प्रत्येक एकादशी व्रत का नाम तथा महत्व भिन्न-भिन्न होता है। एकादशी के दिन अल्पाहार फलाहार करने का विधान है। अन्न (गेहूं, चावल, दाल) आदि खाना निषेध है क्योंकि अन्न का प्रभाव सीधा मन तथा इंद्रियों पर पड़ता है। मन और इंद्रियों को संयमित रखने और निंद्रा व शौच का वेग को नियंत्रित करने के लिए अन्न का त्याग किया जाता है जिससे ध्यान में बाधा न हो। अत: एकादशी के दिन अन्न का त्याग करना चाहिए और द्वादशी तिथि को व्रत खोलना चाहिए। 

How To Do Nirjala Ekadashi fast- एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाने वाला यह व्रत, जिसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं, बिना जल पिए रखा जाता है। व्रत के पूर्ण होने के बाद ही द्वादशी को जल पीने का विधान है। 

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Nirjala ekadashi vrat katha- पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेद व्यास जी से पांडु तथा कुंती के पुत्र भीमसेन कहते हैं, ‘‘मेरी माता और सभी भ्राता आदि एकादशी का व्रत करते हैं परंतु मैं भोजन के बिना नहीं रह पाता। 

अत: हे पूज्य महर्षि व्यास जी कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे मुझे नरकों का भय न हो तथा वर्ष में एक बार किया जाने वाला कोई एक ऐसा व्रत बताएं, जिसके करने से मेरे सभी पाप कर्मों का नाश हो जाए और मेरा कल्याण हो।’’

यह सुनकर महर्षि व्यास जी बोले, ‘‘वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है जिसका नाम निर्जला एकादशी है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस व्रत में भोजन व जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी को सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करें। ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। इस प्रकार निर्जला एकादशी का व्रत उपवास करने से वर्ष की सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है।’’ 

‘‘निर्जला एकादशी व्रत जीव के जन्मों जन्मांतर के पाप कर्मों का नाश करके ब्रह्महत्या जैसे दोष से भी मुक्त करता है। एकादशी व्रत धारण करने वाले जीव को एकादशी के दिन उपवास करके विष्णु, शालीग्राम व श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना करके उन्हें तुलसी दल अर्पित करने चाहिएं।’’ 

‘‘एकादशी तिथि को तुलसी दल (पत्ते) नही तोड़ने चाहिएं। एक दिन पहले तोड़े तुलसी दल पूजा में उपयोग में लाए जा सकते हैं। व्रत के दिन जल से भरे कलश दान करने चाहिएं।  यथास्थान पीने के पानी की व्यवस्था इत्यादि करवानी चाहिए। द्वादशी तिथि को सर्योदय के बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके उनके चरणामृत से ही व्रत पारण करके व्रत खोलना चाहिए।’’  

व्यास जी द्वारा ऐसे सुंदर वचन सुनकर भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत धारण किया तभी से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाने लगा।
 
निर्जला एकादशी व्रत पारण : 22 जून 2021 दिन मंगलवार सुबह 05 बजकर 23 मिनट से सुबह 08 बजकर 11 मिनट तक। 
व्रत पारण की अवधि : 02 घंटा 47 मिनट। 

विशेष : निर्जला एकादशी का व्रत मनुष्य को अपनी आयु, अवस्था, देश, काल, प्रहर परिस्थित के अनुरूप धारण करना चाहिए। वृद्ध, रोगी, गर्भवती स्त्री आदि को निर्जला व्रत धारण नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य किसी कारणवश निर्जला व्रत नहीं कर सकते वे फलाहार व्रत रख सकते हैं।

विकट परिस्थितियों में यदि निर्जला एकादशी का व्रत धारण न भी कर सकें तो निर्जला एकादशी व्रत की कथा श्रवण करके द्वादशाक्षर मंत्र (ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय) का जाप करने से भी व्रत फल की प्राप्ति होती है।

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