सऊदी अरब के रेगिस्तान में दुर्लभ बर्फबारी: भारत के लिए क्यों है यह बड़ा चेतावनी संकेत?

Edited By Updated: 25 Dec, 2025 06:08 AM

rare snowfall in the saudi arabian desert

सऊदी अरब जैसे रेगिस्तानी देश में बर्फबारी होना अपने आप में बेहद दुर्लभ घटना मानी जाती है। लेकिन इस सर्दियों में देश के उत्तरी इलाकों में जो हुआ, वह असाधारण होने के साथ-साथ चिंताजनक भी है। तबुक (Tabuk) और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान अचानक...

इंटरनेशनल डेस्कः सऊदी अरब जैसे रेगिस्तानी देश में बर्फबारी होना अपने आप में बेहद दुर्लभ घटना मानी जाती है। लेकिन इस सर्दियों में देश के उत्तरी इलाकों में जो हुआ, वह असाधारण होने के साथ-साथ चिंताजनक भी है। तबुक (Tabuk) और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान अचानक काफी नीचे चला गया, पहाड़ों और रेगिस्तानी इलाकों में बर्फ की सफेद चादर बिछ गई और प्रशासन को मौसम को लेकर अलर्ट जारी करने पड़े। ऐसी स्थितियां आमतौर पर ठंडे देशों में देखी जाती हैं, न कि मध्य-पूर्व के रेगिस्तानों में।

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वायरल वीडियो और छिपा खतरा

रेगिस्तान में जमी बर्फ के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए। लोग इन्हें सिर्फ खूबसूरत नज़ारा मानकर देख रहे थे, लेकिन इसके पीछे छिपा संदेश कहीं ज्यादा गंभीर था। रेगिस्तान में बर्फबारी इस बात का संकेत है कि धरती की जलवायु प्रणाली में बुनियादी बदलाव हो रहा है और इसके असर अब साफ दिखाई देने लगे हैं। इस घटना ने साफ कर दिया कि जलवायु परिवर्तन अब कोई दूर की या काल्पनिक समस्या नहीं रही। यह बदलाव हमारी आंखों के सामने हो रहा है, और कई बार ऐसे तरीकों से सामने आ रहा है, जो इतिहास में पहले कभी नहीं देखे गए।

जलवायु परिवर्तन का मतलब सिर्फ गर्मी नहीं

जलवायु परिवर्तन को लेकर एक आम गलतफहमी यह है कि इसका मतलब हर जगह सिर्फ तापमान का बढ़ना है। वैज्ञानिकों के मुताबिक हकीकत इसके उलट है। जब धरती गर्म होती है, तो वातावरण में ज्यादा नमी और ऊर्जा जमा होती है। इससे लंबे समय से चले आ रहे मौसम के पैटर्न बिगड़ जाते हैं और अचानक, चरम और असामान्य मौसम की घटनाएं सामने आती हैं। इसी वजह से आज दुनिया भर में, खासकर भारत में, कहीं भीषण गर्मी पड़ रही है तो कहीं अचानक भारी बारिश या ठंड देखने को मिल रही है और वह भी उन जगहों पर, जहां इसकी उम्मीद नहीं होती।

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भारत ने खुद देखे इसके असर

इस साल भारत ने जलवायु बदलाव के खतरनाक संकेत खुद महसूस किए। देश के उत्तर और मध्य भारत में रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव चलीं, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके बाद उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में विनाशकारी क्लाउडबर्स्ट हुए, जिनसे भारी तबाही मची। वहीं, एक ही मानसून ने कुछ राज्यों में देर से और अनियमित दस्तक दी, जबकि दूसरे इलाकों में इसी मानसून ने घातक बाढ़ ला दी। ये घटनाएं महज़ संयोग नहीं हैं, बल्कि दबाव में आई जलवायु प्रणाली के स्पष्ट संकेत हैं।

भारत को अभी से तैयारी करनी होगी

भारत के लिए चेतावनी बर्फबारी जैसी अजीब घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) अस्थिर हो रहा है। भारत में कृषि चक्र, जल प्रबंधन, शहरी योजना और बिजली की मांग सभी मौसम के तय नियमों पर आधारित हैं। जब ये नियम टूटते हैं, तो नुकसान कई गुना बढ़ जाता है — फसलों की बर्बादी, शहरों में जलभराव, भीषण गर्मी से मौतें और आर्थिक नुकसान। अब समय आ गया है कि अनुकूलन (Adaptation) को प्राथमिकता दी जाए। इसमें शामिल हैं:

  • गर्मी सहने योग्य शहरों की योजना

  • मजबूत अर्ली वार्निंग सिस्टम

  • बाढ़ से सुरक्षित बुनियादी ढांचा

  • क्लाइमेट-स्मार्ट खेती

जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयास (Mitigation) जरूरी हैं, लेकिन अब अनुकूलन अपरिहार्य हो चुका है।

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वायरल वीडियो नहीं, गंभीर चेतावनी

सऊदी अरब की बर्फबारी को सिर्फ एक वायरल खबर मानकर नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यह उस दुनिया का एक और संकेत है, जहां जलवायु लगातार ज्यादा अस्थिर और खतरनाक होती जा रही है। जैसे-जैसे धरती गर्म होती जाएगी, ऐसे असामान्य मौसम की घटनाएं और ज्यादा बार देखने को मिलेंगी।

संकट अब दरवाज़े पर नहीं, अंदर आ चुका है

भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए संदेश बिल्कुल साफ है — जलवायु संकट अब आने वाला खतरा नहीं, बल्कि वर्तमान सच्चाई बन चुका है। यह अब हमारे दरवाज़े पर दस्तक नहीं दे रहा, बल्कि हमारे जीवन में प्रवेश कर चुका है।

ग्लोबल साउथ सबसे ज्यादा प्रभावित

सऊदी अरब की यह घटना ग्लोबल साउथ में सामने आ रहे बड़े पैटर्न का हिस्सा है। दक्षिण-पूर्व एशिया में लगातार बाढ़ से लाखों लोग बेघर हुए हैं। अफ्रीका के कई हिस्से कभी सूखे तो कभी मूसलाधार बारिश से जूझ रहे हैं, जिससे खेती तबाह हो रही है। दक्षिण अमेरिका में असामान्य तापमान बढ़ने से पारिस्थितिकी तंत्र और बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई है। यह साफ होता जा रहा है कि विकासशील देश सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं, क्योंकि यहां:

  • जनसंख्या घनी है

  • बुनियादी ढांचा कमजोर है

  • आजीविका मौसम पर ज्यादा निर्भर है

ऐसे में थोड़े समय के लिए आई मौसम की गड़बड़ी भी मानवीय और आर्थिक संकट में बदल जाती है। यही मुद्दा इस साल ब्राज़ील के बेलेम शहर में आयोजित COP30 जलवायु शिखर सम्मेलन में भी चर्चा का केंद्र रहा।

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