Ramayan: इस एक काम को करने से हनुमान जी भागे- भागे आएंगे आपके पास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Oct, 2022 08:01 AM

ram hanuman ji ki katha

लंका विजय के बाद जब श्री राम अयोध्या लौट आए तब महर्षि वशिष्ठ ने उनके राज्याभिषेक की तैयारी करने के विषय में आदेश दिए। सब तैयारियां जोर-शोर से पूर्ण उत्साह उमंग के साथ होने लगीं।

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Ramayan: लंका विजय के बाद जब श्री राम अयोध्या लौट आए तब महर्षि वशिष्ठ ने उनके राज्याभिषेक की तैयारी करने के विषय में आदेश दिए। सब तैयारियां जोर-शोर से पूर्ण उत्साह उमंग के साथ होने लगीं। आसपास और दूरदराज के क्षेत्रों में राजाओं को निमंत्रण भेजे जाने लगे। काशी के राजा को भी निमंत्रण मिला। वह निमंत्रण मिलने पर राज्याभिषेक के अवसर पर उपस्थित होने के लिए काशी से चल पड़े। काशी नरेश भी राम के बड़े परम भक्त थे। जब वह अयोध्या के निकट पहुंचे तब उन्हें नारद जी मिले, उन्होंने उन्हें नमन किया। नारद जी ने कहा, ‘‘हे नरेश! आप हमारी एक बात मानो।’’

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नरेश बोले, ‘‘नारद जी आप आदेश तो करें।’’

तब नारद जी कहने लगे, ‘‘जब आप राजा राम के राज्याभिषेक में उपस्थित हों तब आप सभी को यथायोग्य कहें। किन्तु विश्वामित्र जी को नमन न करें।’’

यह सुनकर काशी नरेश आश्चर्यचकित हो बोले, ‘‘ऐसा क्यों?’’ 

यह आप को बाद में पता चल जाएगा। कह कर नारद जी ‘नारायण-नारायण’ का जाप करते हुए अंतर्ध्यान हो गए।

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काशी नरेश राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर जाकर अपने स्थान पर आसीन हो गए। परिचय की औपचारिकता के अवसर पर काशी नरेश का भी परिचय दिया गया। काशी नरेश ने सभी को यथायोग्य कहा किन्तु ऋषि-मुनियों की पंक्ति में अपनेे आसन पर आसीन विश्वामित्र जी को उन्होंने सादर नमन नहीं किया। यह देख कर विश्वामित्र जी को क्रोध आना स्वाभाविक था। किन्तु उन्होंने उस समय कार्यक्रम में खलल डालना उचित न समझा और शांत बैठे रहे।

श्रीराम के राज्याभिषेक का शुभ कार्य सम्पन्न हुआ। सब उन्हें यथायोग्य बधाइयां देते हुए अपने-अपने स्थानों से नमन करने लगे। तब उचित अवसर पाकर विश्वामित्र जी ने श्री राम से अपने मन के क्षोभ को व्यक्त कर दिया। यह सुनकर श्री राम को भी अच्छा न लगा। उन्होंने इसे मर्यादा का उल्लंघन मानते हुए कहा, ‘‘ऋषि, संध्या से पहले-पहले मैं काशी नरेश को इसका दंड अवश्य दूंगा। आप निश्चित रहें।’’

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उधर जब काशी नरेश को बीच रास्ते में ही यह बात ज्ञात हुई तो वह डर गए और सोचने लगे कि अब श्री राम के क्रोध से कैसे बचा जाए।

यह सोचते-सोचते उनके मन में मां अंजनी का ध्यान हो गया। वह भागे-भागे उनके पास गए। अपना उद्देश्य सुनाया और बोले, ‘‘मां अब तो आप ही मेरी रक्षा कर सकती हैं, कुछ कीजिए।’’ मां अंजनी ने उन्हें आश्वासन दिया। उन्हें निर्भय कर दिया।

जैसे ही हनुमान मां अंजनी के पास आए, माता ने तुरंत ही अपने राम भक्त वीर पुत्र से सारी घटना बतलाकर कहा कि इसमें काशी नरेश का कोई दोष नहीं है। यह सब करा-धरा नारद मुनि का है। अब दो मुनियों के बीच में काशी नरेश फंसे हुए हैं। उनकी रक्षा करो मेरा यह आदेश है। मैं काशी नरेश को अभयदान भी दे चुकी हूं।

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अब हनुमान जी अपनी माता की बात कैसे टालते, सो युक्ति सोचते रहे। तब उनके मस्तिष्क में युक्ति आई। उन्होंने काशी नरेश से कहा, आप निश्चित होकर पवित्र नदी में जाकर राम नाम का जाप करते रहिए। 

काशी नरेेश ने ऐसा ही किया। उधर राम क्रोध में भरे हुए काशी नरेश को खोजते-खोजते उनके पास जा पहुंचे। उन्होंने काशी नरेश को नदी में राम नाम का जप करते देखा। उन्हें देखते ही क्रोध से भरे राम ने तीर संधान करके जैसे ही उनकी इहलीला समाप्त करनी चाही, तभी हनुमान जी तीर के सामने आकर खड़े हो गए। श्री राम ने यह देखा तो बोले हनुमान यह सब क्या है। 

तब हनुमान जी बोले जो आपका नाम जप रहा है उस पर मैं कैसे तीर संधान करने दूंगा। भगवान, मैं अपने प्रभु के नाम लेने वाले की रक्षा का प्रण ले चुका हूं। कृप्या आप इन्हें क्षमा करें। इसमें इनका दोष नहीं है। इस सब करे-धरे का कारण तो नारद मुनि जी हैं।
जब श्री राम ने यह सुना तो काशी नरेश को क्षमा कर दिया और वीर हनुमान जी से बोले, वास्तव में हनुमान जी तुम अत्यंत बुद्धिमान हो। तब हनुमान जी बोले प्रभु यह सब तो आप ही की प्रभुताई है।

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