Rama Ekadashi vrat katha: पापों को पुण्य में बदलने वाली है महा शक्तिशाली रमा एकादशी, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Nov, 2023 01:26 PM

rama ekadashi vrat katha

दीपावली से पहले आने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इसे पुण्यदायिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, जो पापों का नाश करने वाली है।

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Rama Ekadashi 2023 Katha: दीपावली से पहले आने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इसे पुण्यदायिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, जो पापों का नाश करने वाली है। आर्थिक तंगी से निजात पाने के लिए भी लोग यह व्रत रखते हैं क्योंकि इस दिन व्रत रखने से धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है। इसी कारण मां लक्ष्मी जी के नाम पर रमा एकादशी का नाम रखा गया। उनके साथ विष्णु जी की भी पूजा की जाती है और दोनों की कृपा से जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं रहती। पद्म पुराण के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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इस व्रत से जुड़ी एक कथा इस प्रकार है : मुचुकंद नामक राजा की मित्रता इंद्र, यम, कुबेर, वरुण और विभीषण से थी। राजा धर्मात्मा, विष्णु भक्त था। न्यायपूर्वक अपने राज्य में शासन करता था। उसकी एक कन्या चंद्रभागा थी। उसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ था। रमा एकादशी आने वाली थी, तब शोभन अपने ससुराल आया। दशमी को राजा ने घोषणा करवाई कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए। शोभन ने जब घोषणा सुनी तो अपनी पत्नी से बोला- मैं भूख सहन नहीं कर सकता।

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यह सुन कर उसकी पत्नी ने कहा कि आपको भूख सहन नहीं होती तो आपको कहीं और जाना होगा। फिर शोभन ने कहा कि मैं व्रत करूंगा जो भाग्य में होगा देखा जाएगा।

व्रत शोभन के लिए दुखदायी हुआ। प्रात: काल होते ही उसके प्राण निकल गए। तब राजा ने सुगंधित काष्ठ से उसका दाह-संस्कार करवाया। अंत्येष्टि क्रिया के बाद चंद्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी। रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ।

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एक समय मुचुकंद नगर में रहने वाला ब्राह्मण तीर्थ यात्रा पर घूमता हुआ वहां पहुंच गया। शोभन ने उनसे कहा कि उसके राज्य में ऐश्वर्य तो बहुत है परंतु यह स्थिर नहीं है। लौट कर ब्राह्मण ने चंद्रभागा को इस बारे में बताया। चंद्रभागा उनसे कहने लगी कि आप मुझे वहां ले चलें, मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूंगी। वह ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम में ले गया, जहां वेद मंत्रों के उच्चारण से उन्होंने चंद्रभागा का अभिषेक किया। मंत्र के प्रभाव से उसका शरीर दिव्य हो गया। फिर चंद्रभागा ने अपने पति शोभन से कहा कि मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। इससे शोभन का राज्य स्थिर हो गया।  

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