Sawan: भोलेनाथ को पसंद है सावन माह पढ़ें, शिव शक्ति की प्रेम कथा

Edited By Updated: 14 Jul, 2025 02:01 PM

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Benefits of Worshiping Lord Shiva in Sawan Month: सावन भगवान शिव का प्रिय मास है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है और भगवान शिव ने स्वयं अपने मुख से ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनतकुमार से कहा कि मुझे 12 महीनों में सावन विशेष प्रिय है।

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Benefits of Worshiping Lord Shiva in Sawan Month: सावन भगवान शिव का प्रिय मास है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है और भगवान शिव ने स्वयं अपने मुख से ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनतकुमार से कहा कि मुझे 12 महीनों में सावन विशेष प्रिय है। जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें सावन मास इतना प्रिय क्यों है तो शिव ने बताया कि देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष के घर में योग शक्ति के रूप में शरीर त्याग किया था उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति रूप में पाने का प्रण किया था।

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अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था में एक माह निराहार रहकर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद से ही यह माह मुझे सभी मास में अत्यंत प्रिय हो गया। सावन का महीना ऐसा महीना है जिसमें छह ऋतुओं का समावेश होता है और शिवधाम पर इसका महत्व सबसे ज्यादा होता है।

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सावन के महीने में चंद्रमा और जल-तत्व का रहस्यमय समन्वय रहता है। शिव को चंद्रमौलि इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह चंद्रमा और जल-तत्त्व दोनों के अधिपति हैं। श्रावण मास में पृथ्वी के जल में चंद्र-कंपन अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जिससे मानव मन, अवचेतन और आत्मा गहराई से शुद्ध होती है।

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सावन ध्यान की सबसे तीव्र स्थिति योगशास्त्र में सावन को मनो-मौष्मी चक्र का समय कहा गया है, जब मूलाधार से लेकर सहस्रार तक का ध्यान सहज होता है। इस काल में किया गया त्राटक, प्राणायाम और महामृत्युंजय जप साधक को ध्यान-सिद्धि की ओर ले जाता है। तांत्रिक दृष्टिकोण से सावन में शिवलिंग पर जल अर्पण करने से वह जल सीधे मूलाधार चक्र की ऊर्जा को सक्रिय करता है।

वनस्पतियों में आत्मा सक्रिय होती है। आयुर्वेद और अथर्ववेद के गूढ़ श्लोकों के अनुसार, सावन में हर पौधे, विशेषकर तुलसी, बेलपत्र, दूर्वा  प्राणवान हो जाते हैं। यानी उनमें वनस्पति देवता' पूर्णत: जाग्रत रहते हैं। इस समय किसी भी पत्ते या फूल से पूजा करना सीधे प्रकृति के आत्म-तत्त्व से संपर्क का माध्यम बनता है।

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