Srimad Bhagavad Gita:  ‘मन पर नियंत्रण’ का है जीवन में अत्यंत महत्व

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Apr, 2023 11:02 AM

srimad bhagavad gita

स्वामी प्रभुपाद: साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता   सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे। आत्मसंयमयोगाग्रौ जुह्वति ज्ञानदीपिते॥4.27॥

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स्वामी प्रभुपाद: साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता  

सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे। आत्मसंयमयोगाग्रौ जुह्वति ज्ञानदीपिते॥4.27॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : जो मन तथा इंद्रियों को वश में करके आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं, संपूर्ण इंद्रियों तथा प्राणवायु के कार्यों को संयमित मन रूपी अग्नि में आहुति कर देते हैं। यहां पर पतंजलि द्वारा सूत्रबद्ध योगपद्धति का निर्देश है। पंतजलि कृत योगसूत्र में आत्मा को प्रत्यगात्मा तथा परागात्मा कहा गया है। जब तक जीवात्मा इंद्रियभोग में आसक्त रहता  है, तब तक वह परागात्मा कहलाता है और ज्योंही वह इंद्रियभोग से विरत हो जाता है, तो प्रत्यगात्मा कहलाने लगता है।

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जीवात्मा के शरीर में दस प्रकार की वायु कार्यशील रहती हैं और इसे श्वास प्रक्रिया (प्राणायाम) द्वारा जाना जाता है। पतंजलि की योगपद्धति बताती है कि किस तरह शरीर के वायु के कार्यों को तकनीकी उपाय से नियंत्रित किया जाए, जिससे अंतत: वायु के सभी आंतरिक कार्य आत्मा को भौतिक आसक्ति से शुद्ध करने में सहायक बन जाएं।

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इस योगपद्धति के अनुसार प्रत्यगात्मा ही चरम उद्देश्य है। यह प्रत्यगात्मा पदार्थ की क्रियाओं से प्राप्त की जाती है। इंद्रियां इंद्रिय विषयों से प्रतिक्रिया करती हैं, यथा कान सुनने के लिए, आंख देखने के लिए, नाक सूंघने के लिए, जीभ स्वाद के लिए तथा हाथ स्पर्श के लिए हैं और ये सब इंद्रियां मिल कर आत्मा से बाहर के कार्यों में लगी रहती हैं। यही कार्य प्राणवायु के व्यापार (क्रियाएं) हैं।

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अपान वायु नीचे की ओर जाती है, व्यान वायु से संकोच तथा प्रसार होता है, समान वायु से संतुलन बना रहता है और उदान वायु ऊपर की ओर जाती है तथा जब मनुष्य प्रबुद्ध हो जाता है, तो वह इन सभी वायुओं को आत्म साक्षात्कार की खोज में लगाता है। 

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