Edited By Jyoti,Updated: 08 May, 2022 09:26 AM
महापुरुष जो-जो आचरण करता है, सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। वह अपने अनुसरणीय कार्यों से जो आदर्श
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अनुवाद तथा तात्पर्य : महापुरुष जो-जो आचरण करता है, सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। वह अपने अनुसरणीय कार्यों से जो आदर्श प्रस्तुत करता है, सम्पूर्ण विश्व उसका अनुसरण करता है। सामान्य लोगों को सदैव एक ऐसे नेता की आवश्यकता होती है जो व्यावहारिक आचरण द्वारा जनता को शिक्षा दे सके।
यदि नेता स्वयं धूम्रपान करता है तो वह जनता को धूम्रपान बंद करने की शिक्षा नहीं दे सकता।
भगवान चैतन्य ने कहा है कि शिक्षा देने से पूर्व शिक्षक को ठीक-ठीक आचरण करना चाहिए। जो इस प्रकार शिक्षा देता है वह आचार्य या आदर्श शिक्षक कहलाता है। अत: शिक्षक को चाहिए कि सामान्यजन को शिक्षा देने के लिए स्वयं शास्त्रीय सिद्धांतों का पालन करे। कोई भी शिक्षक प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथों के नियमों के विपरीत कोई नियम नहीं बना सकता।
मनु संहिता जैसे प्रामाणिक ग्रंथ मानव समाज के लिए अनुसरणीय आदर्श ग्रंथ हैं, अत: नेता का उपदेश ऐसे आदर्श शास्त्रों के नियमों पर आधारित होना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी उन्नति चाहता है उसे महान शिक्षकों द्वारा अभ्यास किए जाने वाले आदर्श नियमों का पालन करना चाहिए।
श्रीमद्भागवत भी इसकी पुष्टि करता है कि मनुष्य को महान भक्तों के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए और आध्यात्मिक बोध के पथ में प्रगति का यही साधन है। चाहे राजा हो या राज्य का प्रशासनाधिकारी, चाहे पिता हो या शिक्षक-ये सब अबोध जनता के स्वाभाविक नेता माने जाते हैं। इन सबका अपने आश्रितों के प्रति महान उत्तरदायित्व रहता है, अत: इन्हें आदर्श ग्रंथों से सुपरिचित होना चाहिए।