Edited By Jyoti,Updated: 24 Nov, 2022 02:42 PM
श्रीमद्भगवद्गीता ऐसा ग्रंथ है जिसमें ने न केवल श्री कृष्ण द्वारा महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को दिए गए उपदेश शामिल हैं। बल्कि इसमें ऐसे कई अन्य श्लोक भी वर्णित है, जो किसी भी व्यक्ति का जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं।
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श्रीमद्भगवद्गीता ऐसा ग्रंथ है जिसमें ने न केवल श्री कृष्ण द्वारा महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को दिए गए उपदेश शामिल हैं। बल्कि इसमें ऐसे कई अन्य श्लोक भी वर्णित है, जो किसी भी व्यक्ति का जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं। लगातार अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको श्रीमद्भगवद्गीता में दिए गए श्लोक तथा उनका अनुदाव व तात्पर्य बताते आ रहे हैं। जो किसी न किसी रूप से मानव जीवन के साथ संबंध रखते हैं। तो आइए आज एक बार फिर जानते हैं कि श्रीमद्भगवद्गीता का ऐसा श्लोक जो व्यक्ति के लिए जाननी काफी लाभदायक साबित हो सकती है।
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
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एवं बुद्धे: परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।
अनुवाद : इस प्रकार हे महाबाहु अर्जुन! अपने-आपको भौतिक इंद्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जान कर और मन को सावधान आध्यात्मिक बुद्धि (कृष्णभावनामृत) से स्थिर करके आध्यात्मिक शक्ति द्वारा इस काम रूपी दुर्जेय शत्रु को जीतो।
तात्पर्य : भगवद्गीता का यह तृतीय अध्याय निष्कर्षत: मनुष्य को निर्देश देता है कि वह निॢवशेष शून्यवाद को चरम लक्ष्य न मान कर अपने आपको भगवान का शाश्वत सेवक समझते हुए कृष्णभावनामृत में प्रवृत्त हो। भौतिक जीवन में मनुष्य काम तथा प्रकृति पर प्रभुत्व पाने की इच्छा से प्रभावित होता है। प्रभुत्व तथा इंद्रिय तृप्ति की इच्छाएं बुद्धजीव की परम शत्रु हैं किन्तु कृष्णभावनामृत की शक्ति से मनुष्य इंद्रियों, मन तथा बुद्धि पर नियंत्रण रख सकता है। यही इस अध्याय का सारांश है। इंद्रियों को वश में करने के कृत्रिम प्रयासों से आध्यात्मिक जीवन प्राप्त करने में सहायता नहीं मिलती, उसे श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा कृष्णभावनामृत में प्रशिक्षित होना चाहिए। इस प्रकार श्रीमद्भागवद् गीता के तृतीय अध्याय ‘कर्मयोग’ का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ। (क्रमश:)