स्वामी प्रभुपाद: यज्ञ का स्वामी कौन है ?

Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Jun, 2025 07:00 AM

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अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन। प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि:॥8.2॥ अनुवाद : हे मधुसूदन ! यज्ञ का स्वामी कौन है और वह शरीर में कैसे रहता है? और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान पाते हैं ?

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अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि:॥8.2॥
 
अनुवाद :
हे मधुसूदन ! यज्ञ का स्वामी कौन है और वह शरीर में कैसे रहता है? और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान पाते हैं ?
 
तात्पर्य : अधियज्ञ का तात्पर्य इन्द्र या विष्णु हो सकता है। विष्णु समस्त देवताओं में, जिनमें ब्रह्मा तथा शिव सम्मिलित हैं, प्रधान देवता हैं और इन्द्र प्रशासक देवताओं में प्रधान हैं। इन्द्र तथा विष्णु दोनों की पूजा यज्ञ द्वारा की जाती है, किन्तु अर्जुन प्रश्न करता है कि वस्तुत: यज्ञ का स्वामी कौन है और भगवान् किस तरह जीव के शरीर के भीतर निवास करता है ?

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अर्जुन ने भगवान् को मधुसूदन कह कर संबोधित किया क्योंकि कृष्ण ने एक बार मधु नामक असुर का वध किया था। वस्तुत: ये सारे प्रश्न जो शंका के रूप में हैं, अर्जुन के मन में नहीं उठने चाहिए थे, क्योंकि अर्जुन एक कृष्णभावनाभावित भक्त था। अत: ये सारी शंकाएं असुरों के सदृश हैं। चूंकि कृष्ण असुरों को मारने में सिद्धहस्त थे, अत: अर्जुन उन्हें मधुसूदन कहकर सम्बोधित करता है, जिससे कृष्ण अर्जुन के मन में उठने वाली समस्त आसुरी शंकाओं को नष्ट कर दें।
 
इस श्लोक का प्रयाणकाले शब्द भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि अपने जीवन में हम जो भी करते हैं, उसकी परीक्षा मृत्यु के समय होनी है। अर्जुन उन लोगों के विषय में जानने के लिए अत्यन्त इच्छुक है, जो निरन्तर कृष्णभावनामृत में लगे रहते हैं। अन्त समय उनकी क्या दशा होगी? मृत्यु के समय शरीर के सारे कार्य रुक जाते हैं और मन सही दशा में नहीं रहता। इस प्रकार शारीरिक स्थिति बिगड़ जाने से हो सकता है कि मनुष्य परमेश्वर का स्मरण न कर सके।

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परम भक्त महाराज कुलशेखर प्रार्थना करते हैं, ‘‘हे भगवान् ! इस समय मैं पूर्ण स्वस्थ हूं। अच्छा हो कि मेरी मृत्यु इसी समय हो जाए, जिससे मेरा मन रूपी हंस आपके चरणकमलों के नाल के भीतर प्रविष्ट हो सके।’’
 
यह रूपक इसलिए प्रयुक्त किया गया है क्योंकि हंस जो एक जल पक्षी है, वह कमल के पुष्पों को कुरेदने में आनन्द का अनुभव करता है, इस तरह वह कमलपुष्प के भीतर प्रवेश करना चाहता है। महाराज कुलशेखर भगवान् से कहते हैं, ‘‘इस समय मेरा मन स्वस्थ है और मैं भी पूरी तरह स्वस्थ हूं। यदि मैं आपके चरणकमलों का चिन्तन करते हुए तुरन्त मर जाऊं तो मुझे विश्वास है कि आपके प्रति मेरी भक्ति पूर्ण हो जाएगी, किन्तु यदि मुझे अपनी सहज मृत्यु की प्रतीक्षा करनी पड़े तो मैं नहीं जानता कि क्या होगा क्योंकि उस समय मेरा शरीर कार्य करना बन्द कर देगा, मेरा गला रुंध जाएगा और मुझे पता नहीं कि मैं आपके नाम का जप कर पाऊंगा या नहीं। अच्छा यही होगा कि मुझे तुरंत मर जाने दें।’’
 
अर्जुन प्रश्न करता है कि ऐसे समय मनुष्य किस तरह कृष्ण के चरणकमलों में अपने मन को स्थिर कर सकता है।        

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