Edited By Sarita Thapa,Updated: 29 Dec, 2025 01:34 PM

एक बार हकीम अजमल खां और डा. अंसारी अपने कुछ मुस्लिम मित्रों के साथ स्वामी श्रद्धानंद से मिलने गुरुकुल पहुंचे। उस समय गुरुकुल की यज्ञशाला में हवन-यज्ञ हो रहा था। हवन समाप्त होने के बाद स्वामी जी ने अपने साथियों का स्वागत किया।
Swami Shraddhanand Story : एक बार हकीम अजमल खां और डा. अंसारी अपने कुछ मुस्लिम मित्रों के साथ स्वामी श्रद्धानंद से मिलने गुरुकुल पहुंचे। उस समय गुरुकुल की यज्ञशाला में हवन-यज्ञ हो रहा था। हवन समाप्त होने के बाद स्वामी जी ने अपने साथियों का स्वागत किया। इसके बाद वे विचार-विमर्श करने लगे। कुछ देर बाद स्वामी श्रद्धानंद अपने साथियों से बोले, ‘‘खाने का समय हो रहा है, बाकी बातें और काम हम खाना खाने के बाद करेंगे।’’
यह सुनकर उन अतिथियों में से एक बोला, ‘‘स्वामी जी, यह समय हमारी नमाज का है, कृपया आप हमें कोई ऐसा स्थान बताइए जहां पर हम नमाज पढ़ सकें। भोजन हम नमाज अदा करने के बाद ही करेंगे।’’
यह सुनकर स्वामी जी बोले, ‘‘हवन समाप्त हो चुका है, यज्ञशाला खाली पड़ी है। आप सब यहां पर नमाज पढ़ सकते है।’’ मुस्लिम साथियों में से एक बोला, ‘‘स्वामी जी, लेकिन यह तो आपके यज्ञ और हवन करने का स्थान है।’’

स्वामी जी ने उस व्यक्ति की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘भाई, यह यज्ञशाला वंदना के लिए है, चाहे वह पूजा के रूप में हो या नमाज के। सभी धर्मों का एक ही संदेश है-एकता, प्रेम और शान्ति। आप सब यहां पर बिना किसी संकोच के नमाज पढ़ सकते हैं। हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।’’
इसके बाद सभी मुसलमान मित्रों ने उस यज्ञशाला में नमाज पढ़ी और स्वामी जी के अच्छे विचारों की मन ही मन सराहना की। इसके बाद मुसलमान बंधुओं ने उन्हें बड़े आदर के साथ दिल्ली की जामा मस्जिद में बुलाकर उनका प्रवचन कराया।

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