ये हैं चंद्रमा के राज़, 100% गारंटी कोई नहीं जानता होगा

Edited By Jyoti,Updated: 08 Sep, 2019 05:44 PM

these are the secrets of the moon

अगर बात करें भारतीय कालगणना की तो माना जाता है कि ये पूरी तरह से ज्योतिष विद्या पर आधारित है। हिंदू धर्म के मास यानि महीना, तिथि, पर्व व त्यौहार सभी बहुत ही विचारों के आधार पर तय किया जाता है।

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अगर बात करें भारतीय कालगणना की तो माना जाता है कि ये पूरी तरह से ज्योतिष विद्या पर आधारित है। हिंदू धर्म के मास यानि महीना, तिथि, पर्व व त्यौहार सभी बहुत ही विचारों के आधार पर तय किया जाता है। जिसका मूल आधार होता है चंद्रमा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा को मन का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है पृथ्वी के पास या दूर उसकी (चंद्रमा) स्थिति और सूर्य का प्रकाश लेकर चमकने की उसकी नियति मनुष्य के साथ-साथ अन्य प्राणियों को भी प्रभावित करती है। ज्योतिष की भाषा में जब चंद्रमा जब जिन नक्षत्र के साथ संबंध यानि दूरी या कोण बनाता है तो उसे चंद्रमा का नक्षत्र कहते हैं।
PunjabKesari, Secrets of the moon, Secrets, Moon, Chanderma, चंद्रमा, चंद्रमा के राज़,इसके अलावा महीनों का निर्धारण ऋषि व ज्योतिष विशेषज्ञ करते हैं। हिंदू धर्म में पूर्णिमा चंद्रमा की सबसे सशक्त तिथि मानी जाती है। मान्यता है पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी कलाएं विखेरता है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार इस दिन जिस नक्षत्र का उदय होता है, इससे संबंधित माह उसी नाम से संबोधित होता है। उदाहरण के तौर पर बता दें जैसे जिस पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र का उदय होता है वह  चैत्र माह यानि चैत्र का महीना कहलाता है। बता दें एक नक्षत्र छोड़कर अगली पूर्णिमा का नक्षत्र होगा विशाखा, जिस कारण ये माह वैशाख मास कहलाएगा। इसी क्रम में ज्येष्ठा से ज्येष्ठ, पूर्वाषाढ़ से आषाढ़, श्रवण से श्रावण इत्यादि।

हिंदू धर्म के अनुसार कभी-कभी साल में 13 महीने होते हैं। ऐसे में दो महीने एक ही नाम से जाने जाते हैं, जिसे वर्ष अधिक मास कहा जाता है। बताया जाता है एक ही नाम के दो मास होने का कारण है दो का एक ही नक्षत्र से अधि शासित रहना।  
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इसके अलावा इसी तरह कुछ समय बाद के बाद कोई वर्ष क्षयमास का भी होता है यानि ग्यारह माह का वर्ष। ज्योतिष विशेषज्ञ बताते हैं क्षयमास की पूर्णिमा में उस साल पूर्ववर्ती यानि कि पश्चवर्ती नक्षत्र का उदय रहता है। जिस कारण एक माह कम हो जाता है। इस सूक्ष्म निर्धारण से चांद वर्ष और सौर वर्ष का सामंजस्य बना रहता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें सौर वर्ष 365.25 दिन का होता है जबकि चांद वर्ष 354 दिन का। इसी कारण हर तीसरे साल एक माह का अंतर आ जाता है। अधिक मास इसी अंतर को कम करता है।

इस व्यवस्था से त्योहारों-तिथियों में मौसम ऋतुओं का सामंजस्य बना रहता है। बता दें हिजरी सन् में ऐसी व्यवस्था नहीं है।
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