Vijayadashami: कल मनाया जाएगा ‘साहस’ और ‘संकल्प’ का महापर्व ‘दशहरा’

Edited By Updated: 04 Oct, 2022 09:59 PM

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाने वाला विजयदशमी का त्यौहार भारतीय संस्कृति का एक मुख्य पर्व तथा वर्ष की अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है। यह पर्व असत्य पर

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाने वाला विजयदशमी का त्यौहार भारतीय संस्कृति का एक मुख्य पर्व तथा वर्ष की अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है। यह पर्व असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की, दुराचार पर सदाचार की, तमोगुण पर सतोगुण की, असुरत्व पर देवत्व की विजय का पर्व है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र आश्विन मास की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। दसवें दिन विजयदशमी का पर्व पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह से मनाया जाता है। 

विजयदशमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी ने लंकापति रावण का वध किया था। रावण भगवान श्री राम की धर्मपत्नी भगवती सीता जी का अपहरण कर लंका ले गया था। तब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी ने युद्ध के दौरान पहले 9 दिनों तक मां भगवती आदि शक्ति मां दुर्गा की पूजा कर वर प्राप्त किया और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया, इसलिए यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। 

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मां भगवती देवी दुर्गा ने भी 9 रात्रि एवं 10 दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। भारतीय संस्कृति में वीरता और शौर्य की उपासना की जाती है। विजयदशमी इसी साहस और संकल्प का महापर्व है। दशहरे से पूर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी की पावन लीलाओं का मंचन किया जाता है। शारदीय नवरात्रि पर्व के शुभ अवसर पर श्री राम लीला का मंचन प्रारम्भ होता है तथा दशहरे के दिन रावण वध पर विजयदशमी के पर्व के रूप में रावण दहन का पूरे देश में भव्य आयोजन होता है। 

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कुम्भकर्ण, मेघनाद आदि असुरों के वध के साथ अन्तिम दिन रावण वध के दृश्यों का मंचन किया जाता है तथा सायं को रावण दहन का कार्यक्रम  होता  है। कहने का अभिप्राय है कि रामलीला के मंचन का समापन कार्यक्रम रावण दहन के कार्यक्रम के साथ होता है, जिसे हम विजयदशमी का त्यौहार भी कहते हैं। 

समस्त बच्चे, वृद्ध तथा नर-नारी इस रावण दहन कार्यक्रम को देखने के लिए आयोजन में सम्मिलित होते हैं। किसी खुले स्थान पर रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद के पुतलों को स्थापित किया जाता है। कलाकार भगवान राम, सीता जी और लक्ष्मण जी के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से पुतलों का दहन होता है। 

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विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन करने की परम्परा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों पर जीत प्राप्त हुई थी। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा पूरे भारत में प्रसिद्ध है। सात दिनों तक चलने वाला यह उत्सव हिमाचल के लोगों की संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। उत्सव के दौरान भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। 

कर्नाटक के मैसूर शहर में भी दशहरा उत्सव को भव्यता और धूमधाम से मनाने की प्राचीन परम्परा है। वास्तव में विजयदशमी पर्व भारत की सांस्कृतिक, पारम्परिक व राष्ट्रीय एकता का पर्व है, जिसे मर्यादित ढंग से मना कर हर भारतवासी गौरवान्वित महसूस करता है। समाज में सद्-प्रवृत्ति के प्रवाह के लिए कुत्सित मानसिकता का विनाश आवश्यक है। 

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इन पर्वों को मनाने का एकमात्र उद्देश्य यही है कि आज के वैज्ञानिक युग में मानव समाज को सद्-व्यवहार के लिए प्रेरित किया जा सके। पर्व हमारे जीवन में उत्साह का संचार करते हैं। इनके आगमन से हमें अपनी प्राचीन संस्कृति से जुड़ने का सुअवसर प्राप्त होता है। युगों-युगों से हमारी भारतीय सनातन संस्कृति पर्वों के माध्यम से ही अपने अस्तित्व और महानता का बोध कराती आई है, इसलिए हमें भी अपनी संस्कृति को सम्मान देते हुए इन पर्वों को श्रद्धाऔर सम्मानपूर्वक मनाना चाहिए।

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