Jassi Weds Jassi Review: हंसी, सादगी और दिल से जुड़ी एक कहानी

Updated: 08 Nov, 2025 03:44 PM

jassi weds jassi review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है फिल्म जस्सी वेड्स जस्सी

फिल्म: जस्सी वेड्स जस्सी
निर्देशक: परन बावा
कलाकार: हर्षवर्धन सिंह देओ, रहमत रतन, रणवीर शौरी, सिकंदर खेर, सुधेश लेहरी, ग्रूशा कपूर, मनु ऋषि चड्ढा
रेटिंग: 3.5* स्टार

जब आज की ज़्यादातर कॉमेडी फ़िल्में ऊंची आवाज़ों, ओवरएक्टिंग और रंग-बिरंगे सेट्स में हंसी तलाशती हैं, परन बावा की जस्सी वेड्स जस्सी एक ताज़ा झोंका बनकर आती है। यह फिल्म उस दौर की याद दिलाती है जब किरदारों की मासूमियत और रिश्तों की गर्माहट ही कहानी का असली सौंदर्य हुआ करती थी।

कहानी
फ़िल्म हमें ले जाती है 1996 के हल्द्वानी की गलियों में, जहां जसप्रीत उर्फ़ जस्सी (हर्षवर्धन सिंह देओ) सच्चे प्यार का ख्वाब देखता है। उसकी मुलाक़ात होती है जसमीट (रहमत रतन) से, और यहीं से शुरू होती है उनकी प्यारी-सी प्रेम कहानी। लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर है जब एक और जस्सी, यानी जसविंदर (सिकंदर खेर), उनके बीच आ जाता है।

इसके बाद कहानी बन जाती है गलतफहमियों, छोटी-मोटी तकरारों और प्यारी-सी कॉमेडी का ताना-बाना। इसी दौरान जस्सी की राहें टकराती हैं सेहगल (रणवीर शौरी) और उनकी पत्नी स्वीटी (ग्रूशा कपूर) से  एक ऐसा जोड़ा जिसकी शादी अब थक चुकी है। इन सबके जीवन में आने वाला यह तूफान ही फिल्म को असली मज़ेदार मोड़ देता है।

निर्देशन
परन बावा ने फिल्म को दिखावे से दूर, दिल के बहुत क़रीब रखा है। उन्होंने हंसी को हालातों से निकाला है, न कि ज़बरदस्ती के चुटकुलों से। फिल्म का टोन हल्का-फुल्का है लेकिन कभी भी हल्का नहीं पड़ता। खास ज़िक्र करना होगा उस रामलीला वाले सीक्वेंस का जो जाने भी दो यारों की झलक लिए हुए है, मगर अपनी मौलिकता बनाए रखता है। यह सीन न सिर्फ़ फिल्म का सबसे रचनात्मक हिस्सा है, बल्कि यह दिखाता है कि निर्देशक का ह्यूमर कितना समझदार और संवेदनशील है। क्लाइमेक्स थोड़ा नाटकीय ज़रूर है, लेकिन वहीं फिल्म अपने भावनात्मक चरम पर पहुँचती है जहां हंसी और एहसास दोनों एक साथ दिल को छूते हैं।

अभिनय
फ़िल्म का सबसे बड़ा आकर्षण इसका कास्टिंग है। हर्षवर्धन सिंह देओ ने जस्सी को बेहद सादगी और ईमानदारी से जिया है उनकी मासूम मुस्कान और भोली-सी झिझक किरदार में जान डाल देती है। रहमत रतन अपने नैचुरल एक्सप्रेशन और सहज अदायगी से प्रभावित करती हैं; पर्दे पर उनकी मौजूदगी नई हवा जैसी लगती है। रणवीर शौरी अपने ट्रेडमार्क सूखे ह्यूमर और सटीक टाइमिंग से हर सीन में दमखम लाते हैं। सिकंदर खेर शुरू में गंभीर नज़र आते हैं, पर जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उनका किरदार कॉमिक ट्विस्ट लेकर हँसी बटोरता है। ग्रूशा कपूर और मनु ऋषि चड्ढा अपने-अपने हिस्से में बेहद विश्वसनीय हैं, जबकि सुधेश लेहरी अपनी देसी कॉमिक एनर्जी से माहौल हल्का बनाए रखते हैं।

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