Interview: प्यार, रिश्तों और कमिटमेंट के उतार-चढ़ाव को छूने वाली फिल्म है 'मेट्रो इन दिनों'

Updated: 29 Jun, 2025 11:52 AM

metro in dino starcast exclusive interview with punjab kesari

फिल्म के बारे में अनुराग बसु,कोंकणा सेन शर्मा,अली फजल और फातिमा सना शेख ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। प्रसिद्ध निर्देशक अनुराग बसु एक बार फिर दर्शकों के दिलों को छूने के लिए तैयार हैं अपनी नई फिल्म ‘मेट्रो…इन दिनों’ के साथ। यह एक रोमांटिक एंथोलॉजी है, जिसमें चार अलग-अलग उम्र और सोच के जोड़ों की कहानियां पेश की गई हैं। फिल्म में आदित्य रॉय कपूर, सारा अली खान, अनुपम खेर, नीना गुप्ता, पंकज त्रिपाठी, कोंकणा सेन शर्मा, अली फजल और फातिमा सना शेख जैसे दिग्गज कलाकार नजर आएंगे। प्यार, रिश्तों और कमिटमेंट के उतार-चढ़ाव को छूने वाली यह फिल्म 4 जुलाई को सिनेमाघरों में दस्तक देगी। फिल्म के बारे में अनुराग बसु,कोंकणा सेन शर्मा,अली फजल और फातिमा सना शेख ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...

अनुराग बसु

सवाल: जब किसी फिल्म का आइडिया सबसे पहले आपके दिमाग में आता है तो ऐसा क्या है जिस पर आप बिल्कुल समझौता नहीं करते?
अनुराग बासु फिल्म, तो सच बताऊं मुझे खुद नहीं पता कि वो क्या होती है। मैं हमेशा अपनी आवाज सुनता हूं क्योंकि मैं हर बार चाहता हूं कि मेरी अगली फिल्म पिछली से एकदम अलग हो। और उसी चक्कर में मैं इतना अलग सोचता हूं, शूटिंग तक का तरीका, लुक-फील, सब कुछ नया होना चाहिए।

इस वजह से मेरा कोई सिग्नेचर स्टाइल भी नहीं बन पाया है और यह बात कहीं न कहीं डिसएडवांटेज भी बन जाती है, क्योंकि दर्शकों को ये क्लियर नहीं रहता कि मेरी फिल्म देखने जाएंगे तो क्या मिलने वाला है। लेकिन हां, एक चीज जो मेरे लिए non-negotiable है वो ये कि मैं दोहराव नहीं करना चाहता। मैं हमेशा कुछ नया और ईमानदार अनुभव देना चाहता हूं, भले ही वो रिस्की क्यों न हो। मैं दो तीन कहानियां जेब में लेकर घूमता हूं हमेशा कि कौन सी बनाऊं, क्या बनाऊं? कोई भी फिल्म शुरू करने से पहले कि यह बनाऊं या यह बनाऊं? इसके लिए मैं दो लोगों की राय में हमेशा लेता हूं उनको सुनाता हूं सबसे पहले

एक तानी है मेरी पत्नी और दूसरी मेरी दूसरी बीवी है प्रीतम। तो मैं जो इन दोनों को सुनाता हूं और दोनों में से जो पहले और दोनों की राय अक्सर मिलती है जो मेरी मदद करती है।

सवाल: आपकी हर फिल्म में म्यूजिक एक बहुत अहम रोल निभाता है जिसका हर कोई दीवाना होता है। ये म्यूज़िकल मैजिक आखिर होता कैसे है?

ये मैजिक मेरी टीम का है। सच कहूं तो ये सब कुछ टीम की वजह से ही होता है। हम लोग जब म्यूज़िक बनाते हैं वो प्रोसेस भी हमारे लिए बहुत मजेदार होता है। जैसे शूटिंग में मस्ती करते हैं वैसे ही म्यूजिक बनाते वक़्त भी बहुत मस्ती होती है। अक्सर हम पहले से ये प्लान नहीं करते कि गाना कहां आएगा। कभी-कभी तो गाना सिर्फ एक बहाना होता है छुट्टी मनाने का, कई बार ऐसा हुआ है कि हम लोग गोवा चले गए। सोचा कुछ नया करेंगे, लेकिन खाली हाथ वापस आ गए। हां, ऐसा भी होता है। हमारा तरीका होता है कि चलो थोड़ा समय साथ बिताते हैं, बिना किसी दबाव के। प्रीतम मेरे ऑफिस में आकर बैठते हैं, ढेर सारी बातें होती हैं। दुनिया भर की बातें। काम की बात तो सबसे आख़िर में होती है। हम दोनों की ये कोशिश रहती है कि ना तो किसी को इंप्रेस करना है और ना ही अपने पुराने गानों को रीक्रिएट करना है। हमारा फोकस सिर्फ ये होता है कि फिल्म की जो जरूरत है वो पूरी ईमानदारी से निभा दें।

सवाल: Metro...इन दिनों जैसी फिल्में क्या ऐसे लोगों को उम्मीद देती हैं जो बड़े शहरों में प्यार ढूंढ रहे हैं?
हां, मुझे लगता है यह फिल्म देखने के बाद आप थोड़ा मुस्कुराते हुए अपनी ज़िंदगी के फैसले के बारे में सोचेंगे। सफर तो चलता ही रहता है।

सवाल: क्या आपको लगता है कि कोविड के बाद ऑडियंस और सिनेमा दोनों में बदलाव आया है?
हां, कोविड के बाद लोग अधिक सिनेमाई समझ रखते हैं और हर भाषा में कंटेंट का प्रभाव साफ नजर आने लगा है। दर्शक अब बहुत सतर्क हो गए हैं। आपको हर 6-7 महीने में अपनी सोच को बदलना होगा। अब कोई पुराना फॉर्मूला काम नहीं करता। यह अच्छा समय है आप दिल से फिल्म बनाइए, और आगे क्या होगा यह दर्शकों पर छोड़ दीजिए।

कोकंणा सेन शर्मा
सवाल: आप जो काम करती हैं उसमें क्वालिटी नजर आती है। आपकी एक लिगेसी है। तो आप अपनी इस लिगेसी को कैसे देखती हैं? 
नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मुझे लगता है कि जब काम मिल रहा है, तो बस करना चाहिए। बिजी रहना अच्छी बात है। जब काम नहीं होता और मैं घर पर रहती हूं तो मैं बहुत एनोइंग हो जाती हूं। मतलब, फिर मैं घर पर हर चीज में टोकने लगती हूं ये क्यों साफ नहीं हुआ? वो कहां है? जहां तक लिगेसी की बात है, तो वो लोग कहते हैं कोई बोलेगा, कोई नहीं बोलेगा। वो सब मेरे लिए नहीं है। मैं तो बस वो कर रही हूं जो मुझे अच्छा लगता है और अगर आप सच में लिगेसी की बात करना चाहते हैं, तो वो चुनाव से बनती है। जिन लोगों के साथ काम करना चाहती है वहीं से एक लिगेसी बनती है।

सवाल: आपकी फिल्म Luck by Chance में आपने कहा था, "मेरे सपने पूरे नहीं हुए, पर मैं खुश हूं"। क्या ऐसी कोई समानता इस फिल्म के किरदार में है?
अब तक मैंने इस तरह नहीं सोचा था, लेकिन हां हम सबको लगता है कि एक चीज से ही खुशी मिलेगी, पर अक्सर वैसा नहीं होता। अगर हम खुले दिमाग से ज़िंदगी को देखें, तो हमें अलग-अलग रास्तों से खुशी मिल सकती है। सिर्फ काम से खुशी नहीं मिलती। हम हमेशा खुश रहने के पीछे भागते हैं, लेकिन अगर दुःख न हो तो खुशी का मतलब भी नहीं समझ आता। खुश रहना ही सब कुछ नहीं है ज़िंदगी में संतुलन जरूरी है।

सवाल: 90 के दशक या शुरुआती 2000 की कोई ऐसी चीज जो आपको सबसे ज़्यादा याद आती है तो वह क्या होगी?
पहले सिंक साउंड नहीं होता था। तो मैं डबिंग की आदत में थी और मुझे वह प्रक्रिया बहुत पसंद थी। डबिंग के दौरान एक अलग तरह की रचनात्मकता होती थी क्योंकि पूरी फिल्म एक कला होती है, सब कुछ डिजाइन किया जाता है। कभी-कभी निर्देशक टेक के बीच में बात करते थे वह भी बहुत मजेदार होता था। इसलिए कुछ चीजें उस समय की याद आती है।

अली फजल

सवाल: करियर की शुरुआत में रोमांटिक हीरो की छवि बनाई बाद में वह बिल्कुल बदल गई। क्या यह सोच-समझकर लिया गया निर्णय था?
नहीं, ये चीजे प्लान नहीं की जा सकतीं। ये हो जाती हैं। कई बार हमें फेंक दिया जाता है अलग-अलग परिस्थिती में या आप खुद को उन परिस्थियों में पा लेते हो। फिर आप अपनी ताकत के हिसाब से काम करते हो। वक्त बहुत जरूरी होता है। अगर वो वक्त आपके साथ है तो ठीक, वरना मुश्किलें आती हैं।

मेरे भी कई प्रोजेक्ट्स नहीं चले हैं क्योंकि मैं जानता हूं कि कई बार चीजे काम नहीं करती हैं। मुझे खुद को लेकर यही बात अच्छी लगती है कि लोग मुझे किसी एक स्लोट में फिट नहीं कर पाते। कभी ड्रग डीलर, कभी गुड्डू भैया और अब फिर कुछ और। बहुत कम डायरेक्टर्स होते हैं जिनके पास वो विजन होता है कि वो आपको किसी स्टीरियोटाइप से बाहर देख सकें और उस नजर से कास्ट कर सकें।

सवाल: निर्देशक का विजन एक्टर तक कैसे पहुंचता है?
मुझे लगता है कि हम तो एक पजल का हिस्सा हैं। निर्देशक के पास पूरी तस्वीर होती है, हमें बस उस धुंधली दृष्टि को समझते हुए अपना रास्ता तय करना होता है।

सवाल: अनुराग बसु की फ़िल्में एक लोकल वातावरण को भी बहुत भव्य रूप में प्रस्तुत करती हैं। क्या यही उनका असली जादू है?
बिलकुल, वह जानते हैं कि एक आम जगह को भी कैसे larger than life बनाना है। हमने एक सीक्वेंस शूट किया था जिसमें प्रीतम दा और पापोन दा गा रहे थे, और लोग लाइव देख रहे थे वो एनर्जी बस लाजवाब थी।विंडो और कैमरा के साथ ऐसा सेटअप बना था कि रिफ्लेक्शन और लाइटिंग से एक प्यारा शॉट बन गया। यह क्रिएटिविटी सिर्फ विजन से ही आती है।

सवाल: हर प्रोजेक्ट एक अभिनेता को उसके क्राफ्ट के बारे में कुछ नया सिखाता है। 'मैट्रो इन दिनों' ने आपको क्या सिखाया?
इस फिल्म ने मुझे सिखाया कि कैसे मैं मुश्किल सीन या अनियंत्रित सिचुएशन्स में भी खुद पर भरोसा कर सकता हूं। कई बार ऐसा होता था कि कोई सीन structured नहीं होता और अचानक एक विचार आता है और उस विचार को निर्देशक के विजन के अनुरूप ढालना पड़ता है।

फातिमा सना शेख

सवाल: जब आप किसी नए फिल्म सेट पर जाती हैं, तो क्या पहले दिन का अनुभव आपके आत्मविश्वास को बढ़ाता है?
नहीं, मैं उस अनुभव को अपने ऊपर ज़्यादा हावी नहीं होने देती। मेरे लिए निर्देशक की राय और उसकी स्वीकृति बहुत मायने रखती है। वही एक व्यक्ति होता है जिसकी बात मुझे सबसे ज़्यादा असर करती है। अगर वहां से मुझे यह महसूस हो गया कि मैं ठीक कर रही हूं, तो मैं संतुष्ट रहती हूं। मैंने बहुत ज़्यादा काम नहीं किया है इसलिए कई बार यह भी होता है कि तारीफें मिलने के बावजूद मन में शंका बनी रहती है कि शायद मैं उतनी अच्छी नहीं हूं। लेकिन जब कोई व्यक्ति, खासकर निर्देशक, कहता है कि खुद पर भरोसा रखो, तुम ठीक कर रही हो, तो वह बात बहुत गहरी असर छोड़ती है। जैसे लूडो फिल्म के दौरान मुझे यह कहा गया था, और वही शब्द मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। तभी से मैंने अपने अंदर की आवाज पर थोड़ा भरोसा करना शुरू किया। मुझे लगता है, शायद इसी आत्म-विश्वास की वजह से मैं आज जहां हूं वहां तक पहुंच पाई हूं।

सवाल: आप आज के बदलते माहौल को कैसे देखती हैं, जहां इतना कॉन्टेंट बन रहा है?
अब बहुत कुछ बन रहा है, तो mediocrity भी बढ़ गई है। कभी-कभी तो मैं भूल जाती हूं कि कौन सी फिल्म देखी थी। लेकिन फिर भी, कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो दिल को छू जाती हैं — जैसे 'Metro...इन दिनों', जिसे मैं देखना चाहती हूं, महसूस करना चाहती हूं।

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