ईरान की जंगों वाली जमीन: कभी चंगेज तो कभी अमेरिका से लड़ी लड़ाई, अब भी थमा नहीं खूनी इतिहास

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 23 Jun, 2025 10:31 AM

war between iran and america history of persian empire

ईरान यानी प्राचीन फारस, दुनिया के सबसे पुराने और समृद्ध इलाकों में से एक रहा है। इसका भौगोलिक स्थान ऐसा है कि ये सदियों से आक्रांताओं की नजर में रहा है। चाहे अरबों का हमला हो, मंगोलों की तबाही हो या आज के ज़माने में इजरायल और अमेरिका के साथ संघर्ष...

नेशनल डेस्क: ईरान यानी प्राचीन फारस, दुनिया के सबसे पुराने और समृद्ध इलाकों में से एक रहा है। इसका भौगोलिक स्थान ऐसा है कि ये सदियों से आक्रांताओं की नजर में रहा है। चाहे अरबों का हमला हो, मंगोलों की तबाही हो या आज के ज़माने में इजरायल और अमेरिका के साथ संघर्ष ईरान लगातार जंग के साए में रहा है। पुराने समय में ईरान को फारस कहा जाता था। ये इलाका सिर्फ व्यापार और संस्कृति के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक लिहाज़ से भी बेहद अहम था। फारस की समृद्धि इतनी थी कि कई बार इसकी धरती पर अलग-अलग साम्राज्य कब्ज़ा करने पहुंचे। नतीजा? युद्ध, सत्ता परिवर्तन और जनसंहार। 7वीं सदी में ईरान में सासानी साम्राज्य का बोलबाला था। लेकिन इसी दौरान अरबों ने इस पर हमला कर दिया। कई युद्धों के बाद सासानी सत्ता खत्म हो गई और ईरान में इस्लाम की शुरुआत हुई। यही वह दौर था जब फारसी समाज में शिया समुदाय का जन्म हुआ और पारंपरिक फारसी संस्कृति के साथ इस्लामी सोच का मेल शुरू हुआ।

तुर्कों की एंट्री और सत्ता पर कब्ज़ा

11वीं और 12वीं सदी में तुर्कों ने ईरान पर हमला बोला। इन हमलों के चलते फारसी सत्ता को एक बार फिर झटका लगा। तुर्कों ने कई लड़ाइयां लड़ीं और यहां की सत्ता हथिया ली। इससे ईरान का सांस्कृतिक ढांचा भी प्रभावित हुआ लेकिन फारसी पहचान पूरी तरह नहीं मिट सकी।

चंगेज़ खान की तबाही: शहर खून में डूबे

13वीं सदी की शुरुआत में मंगोल नेता चंगेज खान ने ईरान की ओर रुख किया। 1219 से 1260 के बीच उसने एक के बाद एक शहरों को तबाह किया। लाखों लोगों का नरसंहार हुआ, संस्कृति को ध्वस्त किया गया और ईरान का मानचित्र खून में डूब गया। बाद में चंगेज की अगली पीढ़ी ने इस्लाम तो अपनाया, लेकिन फारसी संस्कृति को भी अपनाकर उसे जिंदा रखा।

इस्लामिक क्रांति के बाद भी नहीं रुकी जंग

1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई। इस क्रांति में पश्चिम समर्थक सरकार को हटाकर धार्मिक नेता आयतुल्ला खुमैनी सत्ता में आए। लोगों को उम्मीद थी कि अब स्थिरता आएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद अमेरिका और इजरायल ने ईरान को एक खतरे के रूप में देखना शुरू किया और तब से यह देश लगातार वैश्विक टकरावों में उलझता चला गया।

अमेरिका और इजरायल से रिश्ते सबसे बुरे

इस्लामिक क्रांति के बाद से ही अमेरिका और इजरायल के साथ ईरान के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। कभी परमाणु कार्यक्रम के नाम पर दबाव तो कभी ड्रोन हमलों के बहाने, ईरान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार निशाना बनाया गया। आज 2025 में भी जब अमेरिका और इजरायल मिलकर ईरान पर हमला बोलते हैं, तो यह इतिहास का ही दोहराव लगता है।

 

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