कांग्रेस ने Places of Worship Act को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, जानिए इसके बचाव में क्या तर्क दिए

Edited By Updated: 17 Jan, 2025 03:28 PM

congress challenged the places of worship act in the supreme court

भारत में धार्मिक स्थलों को लेकर कई बार विवाद उठ चुके हैं। ऐसे में एक महत्वपूर्ण कानून, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 ने भारतीय समाज के सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने की कोशिश की थी।

नेशनल डेस्क: भारत में धार्मिक स्थलों को लेकर कई बार विवाद उठ चुके हैं। ऐसे में एक महत्वपूर्ण कानून, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 ने भारतीय समाज के सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने की कोशिश की थी। हाल ही में इस कानून को लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें इस कानून को बचाने के लिए कई तर्क दिए गए हैं।

क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?

यह कानून साल1991 में केंद्र सरकार ने लागू किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखना था। इसके तहत, 15 अगस्त 1947 तक जिन धार्मिक स्थलों का अस्तित्व था, उन्हें उसी रूप में बनाए रखने की बात की गई। इस कानून के मुताबिक, कोई भी धार्मिक स्थल समय के साथ बदल नहीं सकता, यानी उसे तोड़ने या उसका स्वरूप बदलने की अनुमति नहीं है। हालांकि, इस कानून में अध्योया (अयोध्या) विवाद को अलग रखा गया था, क्योंकि यह विवाद बाद में उभरा था।

कांग्रेस का याचिका में क्या तर्क है?

कांग्रेस ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून भारत के धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कांग्रेस का मानना है कि इस कानून में बदलाव से भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है, जो देश की सांप्रदायिक सद्भावना और समाज में सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है। पार्टी का तर्क है कि यह कानून देश की संप्रभुता और अखंडता को भी बचाने का काम करता है।

कांग्रेस का कहना है कि यह कानून भारत की विविधता और समग्रता को बनाए रखने के लिए जरूरी है। विशेष रूप से इस कानून का उद्देश्य है कि सभी धार्मिक समुदायों के बीच शांति और सामाजिक सद्भाव बना रहे। जब कांग्रेस और जनता दल का बहुमत था, तब यह कानून पारित हुआ था, और तब से यह भारत के समाजिक ताने-बाने का अहम हिस्सा बन चुका है।

बीजेपी नेता की याचिका का क्या है मसला?

हालांकि, इस कानून के खिलाफ कुछ नेताओं ने आपत्ति जताई है। हाल ही में, बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों को उनके पूजास्थलों और तीर्थस्थलों पर अपना अधिकार वापस लेने से रोकता है। उनका कहना है कि यह कानून धर्म के मामले में भेदभाव करता है।

इस मामले में कई अन्य याचिकाएं पहले ही सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा चुकी हैं। सभी याचिकाओं पर अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी, जब अदालत इस कानून की संवैधानिक वैधता पर अपना फैसला सुना सकती है।

 

 

 

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