Edited By Rohini Oberoi,Updated: 04 Jul, 2025 03:39 PM

यौन जिज्ञासा के कारण 27 साल की एक युवती ने अपने प्राइवेट पार्ट में मॉइस्चराइजर की बोतल डाल ली जो वहीं फंस गई। इसके बाद युवती को पेट में तेज दर्द और दो दिनों से शौच न होने की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। उसे तुरंत एक निजी अस्पताल की इमरजेंसी में...
नेशनल डेस्क। यौन जिज्ञासा के कारण 27 साल की एक युवती ने अपने प्राइवेट पार्ट में मॉइस्चराइजर की बोतल डाल ली जो वहीं फंस गई। इसके बाद युवती को पेट में तेज दर्द और दो दिनों से शौच न होने की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। उसे तुरंत एक निजी अस्पताल की इमरजेंसी में लाया गया।
डॉक्टरों ने बिना सर्जरी निकाली बोतल
पूछताछ करने पर युवती ने डॉक्टरों को बताया कि उसने यौन सुख की चाह में दो दिन पहले एक मॉइस्चराइजर की बोतल अपने प्राइवेट पार्ट में डाली थी। डॉक्टरों ने शुरू में बोतल निकालने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। इसके बाद युवती के पेट का एक्स-रे किया गया जिसमें बोतल प्राइवेट पार्ट के ऊपरी हिस्से में फंसी हुई दिखाई दी। युवती की गंभीर हालत और आंत फटने की आशंका को देखते हुए उसे तुरंत रात में सर्जरी के लिए ले जाया गया।

हालांकि ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टरों ने बिना सर्जरी किए सिग्मॉइडोस्कोपी नामक तकनीक की मदद से युवती की आंत में फंसी मॉइस्चराइजर की बोतल को सफलतापूर्वक बाहर निकाला। इस प्रक्रिया से पेट या आंत को काटना नहीं पड़ा जिससे मरीज को कम दर्द हुआ और वह जल्दी ठीक हो पाई। पूरी बोतल को सुरक्षित निकाल लिया गया और मरीज की हालत में सुधार होने पर उसे अगले ही दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
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डॉक्टरों ने बताया ऐसे मामलों में ज़रूरी बातें
इस मामले में डॉक्टरों ने बताया कि ऐसे मामलों में समय बर्बाद किए बिना तुरंत प्रक्रिया करना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि देरी होने से आंत फटने का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. अनमोल आहूजा ने बताया कि एंडोस्कोपी, सिग्मॉइडोस्कोपी और लैप्रोस्कोपी जैसी मिनिमल इनवेसिव तकनीकों से इन मामलों का इलाज सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।

सर्जरी टीम में डॉ. तरुण मित्तल, डॉ. आशीष डे, डॉ. अनमोल आहूजा, डॉ. श्रेयष मंगलिक और एनेस्थेटिस्ट डॉ. प्रशांत अग्रवाल शामिल थे।
डॉ. तरुण मित्तल ने एक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अक्सर ऐसे मरीज अकेलापन महसूस करते हैं और उपचार के दौरान इस मनोवैज्ञानिक पहलू का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि यदि ऐसे मरीज मनोरोग से ग्रसित हैं तो उनकी काउंसलिंग की जा सकती है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह मामला शारीरिक इलाज के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता को भी उजागर करता है।