क्या है असम का क्लीन विलेज अभियान

Edited By DW News,Updated: 16 Mar, 2023 07:22 PM

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क्या है असम का क्लीन विलेज अभियान

असम में गांवों की साफ-सफाई के लिए क्लीन विलेज नामक एक प्रतियोगिता शुरू की है. इसमें विजेता गांव में एक किमी लंबी सड़क बनाई जाएगी.प्रतियोगिता में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वालों को भी क्रमश 10 और 8 लाख की विकास योजनाएं उपहार में मिलेंगी. इसका मकसद ग्रामीणों में स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना है. इस प्रतियोगिता के विजेता का एलान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा 17 मार्च को करेंगे. इस प्रतियोगिता में फिलहाल राज्य के खुमताई विधानसभा क्षेत्र में स्थित 148 गांव और 24 चाय बागान हिस्सा ले रहे हैं. प्रतियोगिता का आइडिया कहां से आया मेघालय में सबसे स्वच्छ गांव का दर्जा हासिल करने वाले मावलिनॉन्ग से सबक लेते हुए खुमताई के विधायक मृणाल सैकिया ने अपने इलाके को साफ-सुथरा बनाने के मकसद से इस प्रतियोगिता का एलान किया था. इसे सरकार का भी समर्थन मिला. प्रतियोगिता के विजेताओं के चयन के लिए विशेषज्ञों की पांच टीमें बनाई गई हैं जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा वरिष्ठ पत्रकार, पर्यावरणविद और पूर्व प्रोफेसर शामिल हैं. यह टीम नियमित रूप से अलग-अलग गांवों और चाय बागानों का दौरा कर रही है. बीते एक से तीन मार्च के बीच इस विधानसभा क्षेत्र के तमाम गांवों के सर्वेक्षण के बाद 48 गांवों और तीन चाय बागानों को प्रतियोगिता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है. गोलाघाट जिले के इस विधानसभा क्षेत्र में प्रतियोगिता शुरू होने के बाद ग्रामीणों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है. हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से गांव की साफ-सफाई कर उसे सुंदर बनाने में अपना योगदान दे रहा है. मिसाल के तौर पर बोसा गांव के देवेन बोरा ने बांस के दर्जनों कूड़ेदान बना कर अपने गांव में अलग-अलग जगह रखे हैं. उन पर असमिया भाषा में इधर-उधर कूड़ा नहीं फेंकने की अपील लिखी गई है. स्थानीय प्रशासन का एक वाहन नियमित अंतराल पर आकर उन कूड़ेदान में जमा कूड़ा ले जाता है. कच्चे रास्तों से परेशानी इसी गांव में एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले विजन बरुआ कहते हैं, "अगर हम पहले स्थान पर रहते हैं तो सरकार से गांव से स्थानीय प्राथमिक स्कूल तक सड़क बनाने को कहेंगे. फिलहाल वहां तक जाने का कच्चा रास्ता धान के खेतों के बीच होकर गुजरता है. इससे खासकर बारिश के सीजन में छात्रों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.” बोसा से सटे एक अन्य गांव में करीब डेढ़ दर्जन युवाओं के एक समूह सुबह-सुबह गांव के आम रास्तों की सफाई करते नजर आते हैं. स्थानीय कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाले हेमंत गोगोई कहते हैं, "हम छह-छह लोगों के समूह में बारी-बारी से रोजाना सुबह करीब दो घंटे तक गांव के आम रास्तों और चौपाल की सफाई करते हैं.” चाय बागानों के अलावा सफाई के लिए मशहूर चाय बागानों के लिए मशहूर इस इलाके में बागान मजदूर भी तड़के उठ कर अपनी कालोनियों की साफ-सफाई में जुट जाते हैं. उनको आठ बजे से काम पर जाना होता है. इसलिए सफाई अभियान सुबह छह बजे ही शुरू हो जाता है. सफाई की प्रतियोगिता शुरू करने के सवाल पर स्थानीय विधायक मृणाल सैकिया पड़ोस के राज्य मेघालय स्थित मावलीनांग की मिसाल देते हैं, जिसे एशिया का सबसे स्वच्छ गांव होने का दर्जा हासिल है. वह बताते हैं, "इस दर्जे के बाद वहां पर्यटकों की तादाद तेजी से बढ़ी है. हमारा मकसद इस इलाके में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देना है. यहां पहाड़ या नदी नहीं होने के कारण हमने स्वच्छता को ही अपना मिशन बनाने का फैसला किया है.” सैकिया बताते हैं कि इस प्रतियोगिता का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अब आपको किसी भी गांव में जहां-तहां कूड़े के ढेर नहीं नजर आएंगे. उनके मुताबिक, इस सफाई अभियान में आम लोगों की भागीदारी इस मुहिम की सबसे बड़ी कामयाबी रही है.

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे DW फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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