Edited By Radhika,Updated: 28 Jun, 2025 01:00 PM

अयोध्या में एक मुस्लिम युवक ने सनातन धर्म की खूबसूरती से प्रभावित होकर इसे अपना लिया और अब वह कृष्णा यादव के नाम से जाना जाएगा। उसने बताया कि सनातन धर्म की शिक्षाओं, परंपराओं और संस्कृति से वह गहरे प्रभावित था।
नेशनल डेस्क: अयोध्या में एक मुस्लिम युवक ने सनातन धर्म की खूबसूरती से प्रभावित होकर इसे अपना लिया। अब वह फिरोज नहीं कृष्णा यादव के नाम से जाना जाएगा। उसने बताया कि सनातन धर्म की शिक्षाओं, परंपराओं और संस्कृति से काफी प्रभावित हुआ। भरतकुंड मंदिर में महंत परमात्मा दास और श्रद्धालुओं की उपस्थिति में उसकी धार्मिक दीक्षा हुई जहां उसे हनुमान चालीसा भेंट की गई। यह घटना धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत आस्था का उदाहरण है।

महंत और कृष्णा ने कहा-
महंत परमात्मा दास ने इस घटना को "कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार" बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि धर्म किसी जाति या जन्म से नहीं बल्कि भाव और श्रद्धा से तय होता है। नए बने कृष्णा यादव ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा, "मैंने वर्षों तक आत्मिक शांति को तरसा पर जब पहली बार श्रीरामचरितमानस को पढ़ा और आरती में बैठा तो लगा जैसे कोई खोया हुआ हिस्सा वापस मिल गया हो। यही मेरा घर है, यही मेरी आत्मा का धर्म।" यह वाक्य उनके गहरे आध्यात्मिक अनुभव को दर्शाता है।

बहन शबनम की प्रतिक्रिया-
कृष्णा की बहन शबनम जो रायपुर रोड पर अपने मकान में रहती हैं ने इस फैसले पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "हमारे मां-बाप नहीं रहे, वह अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र है। अगर उसे इसमें सुकून मिला है तो मैं उसका विरोध क्यों करूं? खुदा ने चाहा तो मैं भी कभी उसका मंदिर देखूंगी।" शबनम का यह बयान पारिवारिक सामंजस्य और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सम्मान को दर्शाता है।
सनातन धर्म की ओर आकर्षित होने का कारण
कृष्णा यादव ने स्पष्ट किया कि उन्होंने न तो किसी प्रचार से प्रभावित होकर और न ही किसी दबाव में यह कदम उठाया है। उन्हें सनातन धर्म की सहिष्णुता, प्रकृति से जुड़ाव और गूढ़ दर्शन ने भीतर तक बदल डाला। अब कृष्णा मंदिरों में घंटा बजाते हैं, आरती करते हैं और रोज़ तुलसी को जल देते हैं। वह कहते हैं, "मेरा नाम अब सिर्फ कृष्णा नहीं, मेरी आत्मा भी अब कृष्ण के चरणों में है।"