Edited By Radhika,Updated: 28 Nov, 2025 12:19 PM

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट के जज को अजीबो- गरीब मामले में फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि किसी मोबाइल के नोटिफिकेशन को देखकर फैसला नहीं सुना सकते।
नेशनल डेस्क: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट के जज को अजीबो- गरीब मामले में फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि किसी मोबाइल के नोटिफिकेशन को देखकर फैसला नहीं सुना सकते। हाई कोर्ट ने इस रवैये को न्यायिक प्रक्रिया के लिए गैर-जिम्मेदाराना और अस्वीकार्य बताया। कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि इस तरह की कैजुअल निर्भरता से व्यक्तियों के अधिकार और स्वतंत्रता बुरी तरह प्रभावित होती है।
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जस्टिस सुमित गोयल ने अपने आदेश में साफ किया कि ऑनलाइन ऐप, डिजिटल पोर्टल या कानूनी ब्लॉग पर दिखने वाले छोटे नोटिफिकेशन किसी भी तरह से प्रामाणिक कानूनी स्रोत नहीं माने जा सकते। न्यायिक आदेश केवल रिपोर्टेड जजमेंट official publication या certified copies पर आधारित होने चाहिए।
यह है पूरा मामला
यह पूरा मामला रामजी बनाम हरियाणा के तहत दायर की गई अग्रिम जमानत याचिका से जुड़ा था। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि कुरुक्षेत्र के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 11 जून, 2025 को जमानत याचिका खारिज करते समय एक कानूनी पोर्टल के मोबाइल ऐप पर आए पॉप-अप अलर्ट को आधार बनाया था। हाई कोर्ट ने जब इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा, तो जज ने स्वीकार किया कि उन्होंने पॉप-अप पर आई हेडलाइन को ही आधार बना लिया था और उसका स्क्रीनशॉट भी कोर्ट को भेजा।
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'सुप्रीम कोर्ट का आदेश पढ़ा ही नहीं'
हाई कोर्ट ने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि जज ने न तो सुप्रीम कोर्ट का पूरा आदेश पढ़ा और न ही उसकी वास्तविक मंशा को समझने की कोशिश की। जस्टिस गोयल ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि इस पूरे मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए, ताकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई पर विचार किया जा सके। इसके अलावा हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के सभी न्यायिक अधिकारियों को ऑनलाइन सूचना और टेक्नोलॉजी के जिम्मेदार इस्तेमाल पर विशेष प्रशिक्षण देने के निर्देश भी दिए हैं।