जानिए किस तरह तैयार होता है हमारा राष्ट्रीय ध्वज और इसका क्या है महत्व

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2016 08:26 PM

national flag india

हर एक स्वतंत्र राष्ट्र का एक अपना ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है और ध्वज उस देश की आन बान और शान होती हैं।

जालंधर: हर एक स्वतंत्र राष्ट्र का एक अपना ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है और ध्वज उस देश की आन बान और शान होती है। हर एक इंसान जब अपने देश के झंडे को देखता है तो उसकों झंडे में अपनी आत्मा प्रतीत होती है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम तिरंगा कहते है इसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकेया ने की थी। इसे 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व 22 जुलाई, 1947 को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।

राष्ट्रीय ध्वज का महत्व 
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है। ध्वज की लबाई एवं चौड़ाई का अनुपात 2:3 है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें 24 अरे होते हैं। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व रूप सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थित स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है। 

इस तरह तैयार होता है हमारे देश का झंडा

1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो ने राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए। 1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत कड़े हैं। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है। झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी-टाट। खादी के केवल कपास, रेशम और ऊन का प्रयोग किया जाता है। 

 
यहां तक की इसकी बुनाई भी सामान्य बुनाई से भिन्न होती है। ये बुनाई बेहद दुर्लभ होती है। इसे केवल पूरे देश के एक दर्जन से भी कम लोग जानते हैं। धारवाण के निकट गदग और कर्नाटक के बागलकोट में ही खादी की बुनाई की जाती है। बुनाई से लेकर बाजार में पहुंचने तक कई बार बीआईएस प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण होता है। इसके बाद उसे तीन रंगो में रंगा जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को काढ़ा जाता है। उसके बाद इसे फिर परीक्षण के लिए भेजा जाता है। बीआईएस झंडे की जांच करता है इसके बाद ही इसे बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है।
 
हमारे राष्ट्रीय ध्वज में कई बार परिवर्तन भी किए गए और आखिर में 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया। 

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