Edited By Rohini Oberoi,Updated: 21 Oct, 2025 10:32 AM

अहमदाबाद पुलिस नियंत्रण कक्ष में कार्यरत 50 वर्षीय पुलिस इंस्पेक्टर (पीआई) वनराजसिंह मंजारिया का सोमवार को एक निजी अस्पताल में संदिग्ध रेबीज (Rabies) के कारण निधन हो गया। यह मामला बेहद हैरान करने वाला है क्योंकि उनके परिवार या सहकर्मियों को...
नेशनल डेस्क। अहमदाबाद पुलिस नियंत्रण कक्ष में कार्यरत 50 वर्षीय पुलिस इंस्पेक्टर (पीआई) वनराजसिंह मंजारिया का सोमवार को एक निजी अस्पताल में संदिग्ध रेबीज (Rabies) के कारण निधन हो गया। यह मामला बेहद हैरान करने वाला है क्योंकि उनके परिवार या सहकर्मियों को हाल-फिलहाल में उन्हें किसी भी जानवर के काटने का कोई इतिहास याद नहीं है। करीब 25 वर्षों तक पुलिस नियंत्रण कक्ष में सेवा देने वाले मंजारिया एक कुशल अधिकारी होने के साथ-साथ पशु प्रेमी के रूप में भी जाने जाते थे और उनके पास दो-तीन पालतू कुत्ते थे।

अचानक बिगड़ी तबीयत
इंस्पेक्टर मंजारिया की तबीयत शुक्रवार को अचानक बिगड़ी जिसकी शुरुआत बुखार से हुई। इसके तुरंत बाद उनमें रेबीज के दो प्रमुख लक्षण दिखाई दिए:
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हाइड्रोफोबिया (Hydrophobia): पानी से डर लगना।
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एयरोफोबिया (Aerophobia): हवा से डर लगना।
इन लक्षणों के बाद उनकी हालत तेज़ी से बिगड़ती गई। डॉक्टरों ने बताया कि उनमें रेबीज के स्पष्ट लक्षण दिख रहे थे लेकिन अंतिम पुष्टि के लिए उनके नमूने पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV) भेजे गए हैं। उनके आकस्मिक निधन से पूरा पुलिस विभाग स्तब्ध है। सहकर्मियों ने उन्हें एक कुशल, धाराप्रवाह संवाद करने वाले और दयालु अधिकारी के रूप में याद किया।

बिना काटे भी फैल सकता है रेबीज
परिवार के सदस्यों ने डॉक्टरों को बताया कि उन्हें कुत्ते या किसी अन्य जानवर के काटने का कोई गंभीर निशान नहीं था, हां कुछ मामूली खरोंचें जरूर आई थीं। उन्होंने यह भी बताया कि हाल ही में उनका एक पालतू कुत्ता कुछ समय के लिए लापता हो गया था लेकिन वह बिना किसी बीमारी के वापस आ गया था। चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस मामले पर रोशनी डालते हुए कहा है कि रेबीज बिना काटे भी फैल सकता है।
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संक्रमण का तरीका: यदि किसी संक्रमित जानवर की लार (Saliva) किसी खुले घाव या खरोंच को छू ले तो संक्रमण फैल सकता है।
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खतरे की चेतावनी: विशेषज्ञों ने चेताया कि एक बार रेबीज के न्यूरोलॉजिकल लक्षण (तंत्रिका तंत्र से जुड़े लक्षण) दिखाई देने शुरू हो जाएं तो रोगी के बचने की संभावना बेहद कम हो जाती है।
फिलहाल राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है ताकि मृत्यु के वास्तविक कारण की पुष्टि हो सके।