'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को लेकर RSS और उपराष्ट्रपति के बयान से मचा सियासी बवाल

Edited By Updated: 28 Jun, 2025 04:18 PM

political uproar due to the statement of rss and vice president

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में एक पुस्तक विमोचन समारोह में कहा कि संविधान की प्रस्तावना को बदला नहीं जा सकता क्योंकि यह हमारे संविधान की बुनियादी आत्मा है। उन्होंने कहा कि यह प्रस्तावना उस बीज की तरह है जिससे संविधान की पूरी संरचना...

नेशनल डेस्क: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में एक पुस्तक विमोचन समारोह में कहा कि संविधान की प्रस्तावना को बदला नहीं जा सकता क्योंकि यह हमारे संविधान की बुनियादी आत्मा है। उन्होंने कहा कि यह प्रस्तावना उस बीज की तरह है जिससे संविधान की पूरी संरचना विकसित होती है। धनखड़ का यह बयान ऐसे समय आया है जब आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने पर राष्ट्रीय बहस की मांग की है। इस पूरे प्रकरण के बाद सियासी घमासान मच चुका है।  उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के अलावा दुनिया में किसी भी देश की संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया है। उन्होंने याद दिलाया कि भारत की संविधान की मूल प्रस्तावना 1976 में 42वें संशोधन के दौरान बदली गई थी। आपातकाल के दौर में ‘समाजवादी’ ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़े गए थे। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह संविधान निर्माताओं की मूल भावना के साथ न्याय था?
धनखड़ ने कहा कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय समय था। उस दौरान लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया था और नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई कि इतनी गंभीर परिस्थितियों में संविधान की प्रस्तावना से छेड़छाड़ की गई और इसे “शब्दों का तड़का” कहा। उनके मुताबिक यह न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण था बल्कि संविधान की आत्मा के साथ विश्वासघात भी।

आरएसएस ने क्यों उठाया यह मुद्दा?

आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने बीते दिनों मांग की कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को बने रहना चाहिए या नहीं, इस पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए। उन्होंने इन शब्दों को “राजनीतिक अवसरवाद” और “संविधान की आत्मा पर हमला” करार दिया। उनके अनुसार ये शब्द डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा तैयार मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और इन्हें आपातकाल के दौरान जबरन जोड़ा गया था।

विपक्ष का विरोध और राजनीतिक घमासान

आरएसएस और उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयानों के बाद विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कड़ी आपत्ति जताई है। कांग्रेस ने कहा कि यह संविधान की आत्मा को कमजोर करने की कोशिश है और इससे लोकतंत्र को खतरा हो सकता है। कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इस पर आपत्ति जताई और कहा कि यह देश को उसके मूल सिद्धांतों से दूर ले जाने की कोशिश है।

सरकारी पक्ष की सफाई

भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने आरएसएस के इस बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह संविधान को खत्म करने की बात नहीं है, बल्कि उसे मूल रूप में लौटाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' जैसे शब्द संविधान के मूल स्वरूप का हिस्सा नहीं थे, और सही सोच वाला हर नागरिक इस समीक्षा का समर्थन करेगा।

ऑर्गनाइज़र पत्रिका में लेख का हवाला

आरएसएस से जुड़ी पत्रिका "ऑर्गनाइज़र" में भी इस विषय पर एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें यह कहा गया कि संविधान की प्रस्तावना में हुए बदलाव आपातकाल के समय की 'नीतिगत विकृति' का परिणाम थे। लेख में यह तर्क दिया गया कि देश को संविधान की मूल भावना की ओर लौटना चाहिए न कि उसे सत्ता के हित में मोड़ा जाए।

 

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