Edited By Pardeep,Updated: 29 Nov, 2025 06:16 AM

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा की तारीख अब पूरी तरह तय हो चुकी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि पुतिन 4 और 5 दिसंबर को भारत के औपचारिक दौरे पर आएंगे। इस दौरे से पहले रूस ने एक बड़ा कदम उठाया है। रूस की निचली संसद स्टेट...
नेशनल डेस्कः रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा की तारीख अब पूरी तरह तय हो चुकी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि पुतिन 4 और 5 दिसंबर को भारत के औपचारिक दौरे पर आएंगे। इस दौरे से पहले रूस ने एक बड़ा कदम उठाया है। रूस की निचली संसद स्टेट डूमा भारत के साथ किए गए महत्वपूर्ण सैन्य समझौते RELOS (Reciprocal Exchange of Logistics Support) को मंजूरी देने की तैयारी में है। पुतिन अपनी यात्रा के दौरान 23वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने वाले हैं।
RELOS समझौता क्या है?
यह लॉजिस्टिक्स समर्थन से जुड़ा एक सैन्य समझौता है जिसे 18 फरवरी 2025 को मॉस्को में भारत के राजदूत विनय कुमार और रूस के तत्कालीन उप रक्षा मंत्री अलेक्जेंडर फोमिन ने साइन किया था।
इस समझौते का मुख्य उद्देश्य है:
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दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों और सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति देना
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संयुक्त सैन्य अभ्यासों को आसान बनाना
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मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियानों में सहयोग तेज करना
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सैन्य लॉजिस्टिक्स (ईंधन, मरम्मत, सप्लाई आदि) को सरल और सस्ती प्रक्रिया बनाना
रूसी सरकार का कहना है कि इस समझौते की मंजूरी मिलने से भारत और रूस के बीच सैन्य सहयोग और मजबूत और प्रभावी होगा।
यह समझौता दोनों देशों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, RELOS से भारत और रूस के बीच सैन्य गतिविधियों में समन्वय बढ़ेगा। दोनों देश एक-दूसरे के नौसैनिक और सैन्य ठिकानों का शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकेंगे। यह समझौता आगे चलकर आर्कटिक क्षेत्र में संयुक्त सैन्य अभ्यास तक भी लागू हो सकता है, क्योंकि भारत की LNG आपूर्ति रूस के यमाल प्रायद्वीप से आती है।
कैसे मदद करेगा यह समझौता दोनों देशों की नौसेना को?
भारत के कई युद्धपोत और जहाज, जैसे— तलवार-श्रेणी के फ्रिगेट, आईएनएस विक्रमादित्य बर्फीले आर्कटिक क्षेत्र में चलने में सक्षम हैं। अब ये जहाज रूस के नौसैनिक अड्डों का उपयोग कर सकेंगे। इसी तरह, रूसी नौसेना भी भारत के समुद्री बेसों का इस्तेमाल कर सकेगी, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में चीन और अन्य बाहरी देशों की बढ़ती मौजूदगी का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।