Edited By Parveen Kumar,Updated: 27 Jul, 2025 09:39 PM

यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI), जो आज भारत के डिजिटल लेनदेन की रीढ़ बन चुका है, अब तकनीकी रूप से और मजबूत बनने जा रहा है। 1 अगस्त 2025 से पूरे देश में UPI से जुड़े नए नियम लागू होंगे, जिनका मकसद ट्रांजैक्शन फेलियर को कम करना और यूजर्स को बेहतर अनुभव...
नेशनल डेस्क: यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI), जो आज भारत के डिजिटल लेनदेन की रीढ़ बन चुका है, अब तकनीकी रूप से और मजबूत बनने जा रहा है। 1 अगस्त 2025 से पूरे देश में UPI से जुड़े नए नियम लागू होंगे, जिनका मकसद ट्रांजैक्शन फेलियर को कम करना और यूजर्स को बेहतर अनुभव देना है।
क्यों जरूरी हुए बदलाव?
मार्च और अप्रैल 2025 में दो बार बड़ी संख्या में UPI ट्रांजैक्शन फेल हुए, जिससे करोड़ों यूजर्स प्रभावित हुए। 26 मार्च और 12 अप्रैल को हुई इस परेशानी के बाद NPCI (नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) को सिस्टम की गहराई से जांच करनी पड़ी।
जांच में पाया गया कि मौजूदा UPI सिस्टम तेजी से बढ़ते ट्रैफिक, अनलिमिटेड API कॉल्स और बेतरतीब ऑटो-पेमेंट प्रोसेसिंग को ठीक से संभाल नहीं पा रहा था। इसलिए NPCI ने सिस्टम को स्केलेबल और लोड बैलेंस्ड बनाने के लिए जरूरी तकनीकी बदलावों का फैसला किया।
जानिए 1 अगस्त से क्या होंगे UPI के नए नियम:
बैलेंस चेक करने की सीमा तय – दिन में अधिकतम 50 बार
अब UPI यूजर्स एक दिन में केवल 50 बार ही अपना अकाउंट बैलेंस चेक कर सकेंगे।
पहले कोई सीमा नहीं थी, जिससे बैंकों के सर्वर पर भारी दबाव पड़ता था।
फायदा: इससे बैकएंड सिस्टम पर लोड कम होगा और लेनदेन फेल होने की घटनाएं घटेंगी।
AutoPay ट्रांजैक्शन तय समय पर ही होंगे प्रोसेस
अब सब्सक्रिप्शन, EMI या बिजली-पानी जैसे बिलों के ऑटो-पेमेंट पूरे दिन किसी भी वक्त नहीं होंगे।
इन ट्रांजैक्शनों को अब निर्धारित समय स्लॉट्स में ही प्रोसेस किया जाएगा।
फायदा: इससे सर्वर पर एकसाथ लोड नहीं पड़ेगा और ट्रांजेक्शन तेजी से होंगे।
UPI को बनाया जा रहा है ग्लोबल स्टैंडर्ड के मुताबिक
IMF की हालिया रिपोर्ट में UPI को दुनिया की सबसे बड़ी इंटरऑपरेबल रियल टाइम पेमेंट टेक्नोलॉजी बताया गया है।
NPCI अब इसे और विश्वसनीय, तेज़ और टेक्निकली मजबूत बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
बदलाव क्यों जरूरी थे?
- डिजिटल लेनदेन की संख्या लगातार बढ़ रही है
- बैकएंड में ट्रैफिक मैनेजमेंट की संरचना कमजोर थी
- ऑटो-पेमेंट्स का कोई तय समय नहीं था, जिससे सिस्टम पर एक साथ लोड बढ़ जाता था