‘ड्रग्स मुक्त भारत’ की दिशा में सरकार का प्रयास, समाज की जिम्मेदारी

Edited By Updated: 16 Jun, 2025 05:20 AM

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भारत इस समय एक ऐसी चुनौती का सामना कर रहा है जो दिखने में व्यक्तिगत लग सकती है, लेकिन असल में यह एक गहरी सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी समस्या है। नशीले पदार्थों का बढ़ता सेवन केवल स्वास्थ्य संकट नहीं है। यह हमारे युवाओं की ऊर्जा,...

भारत इस समय एक ऐसी चुनौती का सामना कर रहा है जो दिखने में व्यक्तिगत लग सकती है, लेकिन असल में यह एक गहरी सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी समस्या है। नशीले पदार्थों का बढ़ता सेवन केवल स्वास्थ्य संकट नहीं है।
यह हमारे युवाओं की ऊर्जा, परिवारों की स्थिरता और देश की भविष्य की संभावनाओं पर एक गहरा आघात है। इस विषय को लेकर केंद्र्र सरकार ने समय पर गंभीरता दिखाई है और बीते कुछ वर्षों में इसे रोकने की दिशा में अनेक ठोस कदम उठाए हैं।

12 जून से 26 जून तक देश भर में ‘नशामुक्त भारत पखवाड़ा’ मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य न केवल जागरूकता फैलाना है, बल्कि जनता को इस प्रयास का सक्रिय भागीदार बनाना भी है। इसका समापन 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय ड्रग विरोधी दिवस के अवसर पर होता है, जो विश्व स्तर पर इस संकट के प्रति एकजुटता का प्रतीक बन चुका है। भारत सरकार ने ‘नशामुक्त भारत अभियान’ के अंतर्गत कई स्तरों पर काम शुरू किया है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एन.सी.बी), राज्य पुलिस बल, स्वास्थ्य मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय मिलकर स्कूलों, कालेजों, ग्राम पंचायतों और नगरीय क्षेत्रों में जनजागरूकता अभियान चला रहे हैं।

नुक्कड़ नाटक, ई-प्लेज, डिजिटल प्रचार और सामुदायिक संवाद के माध्यम से प्रयास हो रहे हैं कि ड्रग्स को सिर्फ अपराध नहीं, एक सामाजिक बुराई के रूप में देखा जाए। लेकिन इस समस्या का केवल सामाजिक पहलू नहीं है। यह एक सुनियोजित रणनीति का भी हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत की आंतरिक शक्ति को कमजोर करना है। सीमावर्ती क्षेत्रों से ड्रग्स की तस्करी को प्रायोजित करने वाले संगठनों और पड़ोसी देशों का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ नहीं है, बल्कि वे भारत की युवा आबादी को कमजोर बनाकर देश की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर चोट करना चाहते हैं। जब कोई युवा नशे की गिरफ्त में आता है, तो वह केवल अपना ही नुकसान नहीं करता, बल्कि उसकी ऊर्जा, प्रतिभा और योगदान से देश भी वंचित रह जाता है। यह एक प्रकार का धीमा हमला है, जो बिना गोली चलाए हमारी नींव को खोखला कर सकता है।

चिंता की बड़ी बात यह भी है कि ड्रग्स की काली कमाई का इस्तेमाल पड़ोसी देश की सेना भारत में आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए करती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम ड्रग्स के विरुद्ध इस संघर्ष को केवल एक स्वास्थ्य या सामाजिक मुद्दा न मानें, बल्कि इसे राष्ट्र सुरक्षा से भी जोड़कर देखें। सरकार की तरफ से कानूनों को मजबूत करने और तस्करों पर कार्रवाई तेज करने के लिए भी कदम उठाए गए हैं। एन.डी.पी.एस.एक्ट के तहत तस्करी, भंडारण और वितरण पर सख्त दंड तय किए गए हैं, और तस्करों की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई भी हो रही है। साथ ही, सरकार यह समझती है कि नशा करने वाले व्यक्ति को केवल अपराधी मानने से समस्या का हल नहीं होगा। इसलिए इलाज और पुनर्वास को भी नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया गया है। 2024 में हरियाणा में विभिन्न नशामुक्ति केंद्रों और अस्पतालों में 6 लाख से अधिक लोगों ने इलाज के लिए संपर्क किया, जो यह दर्शाता है कि समाज में धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ रही है। परंतु इलाज की सुविधाएं अब भी सीमित हैं और हर जिले में समुचित नशामुक्ति केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ परामर्श सेवाएं, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, और पुनर्वास कार्यक्रमों को भी मजबूत करने की जरूरत है।

सिर्फ सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे। यह एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें समाज की भूमिका सबसे अहम है। माता-पिता, शिक्षक, समाजसेवी संस्थाएं, और मीडिया हर किसी को इस अभियान में सहभागी बनना होगा। युवाओं को शुरू से यह समझाना होगा कि नशा कोई ‘स्टाइल’ नहीं, बल्कि आत्म-विनाश का मार्ग है। हमें अपने बच्चों को सिर्फ करियर नहीं, चरित्र के बारे में भी बताना होगा। यह भी जरूरी है कि नशे को लेकर समाज में जो चुप्पी और शर्म है, उसे तोड़ा जाए। अगर किसी को नशा करने की समस्या है, तो उसे दुत्कारने की बजाय मदद की जरूरत है। जब समाज सहयोगी बनेगा, तभी कोई युवा खुलकर इलाज की ओर बढ़ेगा। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि इस समस्या की जड़ें कहीं गहरी हैं बेरोजगारी, मानसिक तनाव, सामाजिक दबाव और संवाद की कमी। ये सभी ऐसे कारक हैं जो युवा को नशे की ओर धकेल सकते हैं। अत: समाधान केवल ड्रग्स की आपूर्ति को रोकने में नहीं, बल्कि मांग को भी सामाजिक स्तर पर घटाने में है।

भारत एक युवा देश है। यही युवा हमारी सबसे बड़ी शक्ति हैं और यही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी। अगर हम उन्हें सही दिशा दें, आत्म-विश्वास और अवसर दें, तो वे नशे जैसे किसी भी प्रलोभन को ठुकरा देंगे। इसके लिए हमें शिक्षा में सुधार, रोजगार के अवसर, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा। अंतत: यह हम सबकी सांझी जिम्मेदारी है। यदि सरकार प्रयास कर रही है, तो समाज को उस प्रयास को हाथ थामकर आगे ले जाना होगा। नशामुक्त भारत केवल एक संकल्प नहीं, एक राष्ट्रीय उद्देश्य है और इस दिशा में सबका सहयोग आवश्यक है।-ओ.पी. सिंह(डी.जी.पी. एवं प्रमुख, हरियाणा स्टेट नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो) 

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