अध्यादेश अच्छे विवेक को नकारता है

Edited By ,Updated: 26 May, 2023 03:50 AM

ordinance negates good conscience

मोदी सरकार अचानक असुरक्षित क्यों महसूस कर रही है? राजधानी क्षेत्र में सेवाओं (नौकरशाहों) पर निर्वाचित सरकार के नियंत्रण पर जोर देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ के सर्वसम्मत निर्णय को पलटने के लिए रातों-रात एक अध्यादेश जारी...

मोदी सरकार अचानक असुरक्षित क्यों महसूस कर रही है? राजधानी क्षेत्र में सेवाओं (नौकरशाहों) पर निर्वाचित सरकार के नियंत्रण पर जोर देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ के सर्वसम्मत निर्णय को पलटने के लिए रातों-रात एक अध्यादेश जारी करना, इसमें घबराहट की बू आ रही है। आजादी के बाद से ही नौकरशाही लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह रही है। यही संविधान कहता है। 

भारतीय जनता पार्टी उन राज्यों में इस व्यवस्था से खुश है जहां यह शासन करती है लेकिन उन राज्यों में नहीं जहां यह नहीं है। बाद में केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल निर्वाचित सरकारों के कामकाज को असहज कर देते हैं। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी भी है, जहां केंद्र्र सरकार स्थित है, निर्वाचित सरकार की कुछ शक्तियां उससे छीन ली जाती हैं और केंद्र्र में निहित होती हैं, जैसे पुलिस पर नियंत्रण, कानून और व्यवस्था का प्रबंधन और भूमि से संबंधित सभी मामले। 

लोकतांत्रिक कामकाज के किसी भी परीक्षण से, दिल्ली में नौकरशाही को केजरीवाल और उनके मंत्रियों के मंत्रिमंडल द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय की 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से इस सिद्धांत को बरकरार रखा, जिसने फैसले को कई और बहुत ही महत्वपूर्ण कानूनी आधार दिए। इस फैसले ने भाजपा को बेहद परेशान किया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते के भीतर उसने एक अध्यादेश जारी किया, जिसे लागू करना उसे शोभा नहीं देता था, खासकर इतनी जल्दबाजी में और इतने गोपनीय तरीके से! तथ्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट गर्मियों की छुट्टी पर था, जिसने इस जल्दबाजी में योगदान दिया होगा। 

राजधानी में सुरक्षा और भूमि प्रबंधन की अध्यक्षता से असंतुष्ट, मोदी सरकार केंद्र्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल के माध्यम से शासन के अन्य क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना चाहती थी। यह स्पष्ट रूप से अनुचित था क्योंकि इसका मतलब था कि केजरीवाल सरकार की भूमिका को उपराज्यपाल के सामने एक कठपुतली के रूप में कम कर दिया गया था, जो जनप्रतिनिधियों द्वारा लिए गए निर्णयों को उल्टा रहे थे और नौकरशाहों पर अपने नियंत्रण के माध्यम से चुनी हुई सरकार को तोड़ रहे थे। 

यदि मोदी व्यवस्था राजधानी क्षेत्र को नियंत्रित करना चाहती है और जनता पर अपनी इच्छा थोपना चाहती है तो उसे एक निर्वाचित सरकार को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिए, लेकिन तब उसे संविधान के साथ छेड़छाड़ करनी होगी, जिसके लिए उसे संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। जब तक वह उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेती तब तक उसे दिल्ली विधानमंडल और चुनी हुई सरकार के मंत्रिमंडल को दरकिनार करने का प्रयास नहीं करना चाहिए, जैसा कि वह अब कर रही है। 

एक और अधिक प्रासंगिक और स्पष्ट रूप से परेशान करने वाला विचार, जो मोदी जैसे आत्मविश्वासी नेता के मन की शांति को असंतुलित कर देगा, वह यह कि तीसरा कार्यकाल हासिल करने की निश्चितता अब व्यापक रूप से संदेह में बदल रही है। विपक्षी एकता को बल मिल रहा है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने इस हृदय परिवर्तन में काफी हद तक योगदान दिया है। अध्यादेश ने भी अपना काम किया है। सवाल यह है कि ‘क्या यह एकता कायम रहेगी?’ केजरीवाल ने, विशेष रूप से गुजरात जैसे राज्यों में कुछ प्रगति की है और वह अभी भी प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए हुए हैं, हालांकि उनका समय नहीं आया है। 

केजरीवाल को फिलहाल नौकरशाही के साथ अपने और ‘आप’ के संबंधों को सुधारने की जरूरत है। अगर ‘आप’ नौकरशाहों के साथ संदिग्धों जैसा व्यवहार करती है तो वह अपने नेता के साथ लडख़ड़ा जाएगी। उन्हें अपने अधिकारियों का सम्मान करना सीखना होगा, ताकि बदले में वे उनका और उनकी टीम का सम्मान करें। ऐसा लगता है कि केजरीवाल ने सुशासन के इस पहलू पर स्पष्ट रूप से विचार नहीं किया। उन्हें सुलह की दिशा में पहला कदम उठाना होगा। यदि उसका एक दिन प्रधानमंत्री बनने का सपना है तो यह उसके लिए उपयोगी होगा। मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने अपने करियर में जिन राजनेताओं का सामना किया, वे पूरी तरह से अलग सांचे के थे। यदि आप अनियमित अनुरोधों को ठुकरा देते हैं तो वे आपका और भी अधिक सम्मान करेंगे।

पहले के दिनों में भी, विपक्षी सरकारें राज्यों में सत्ता में थीं, जब कांग्रेस या भाजपा केंद्र्र पर शासन कर रही थी। जहां तक मुझे याद है, उन दिनों कोई बड़ी असहमति दर्ज नहीं की गई थी।नियमित रूप से ऐसी गड़बडिय़ां क्यों हों, इस पर शोध की जरूरत है। 1986 में राजीव गांधी सरकार ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। संसद ने मुल्लाओं के दबाव में एक कानून बनाया। इसने भारतीय राजनीति के पाठ्यक्रम को बदल दिया और अंतत: कांग्रेस पार्टी के पतन का कारण बना। स्वाभाविक है कि मोदी यह सोचते हैं कि गलत राजनीतिक घटनाएं केवल उस पार्टी को प्रभावित करेंगी जो आज उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 

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