पूर्वोत्तर के लोगों को नस्लीय पूर्वाग्रह और हिंसा का दंश झेलना पड़ रहा

Edited By ,Updated: 20 Jun, 2025 05:30 AM

people of the northeast are facing the brunt of racial prejudice and violence

‘यहां तक  कि भगवान गणेश की मूर्तियां भी विदेश से आती हैं, छोटी आंखों वाली गणेश की मूर्तियां जिनकी आंखें ठीक से खुलती भी नहीं हैं’- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 27 मई, 2025 यदि भारत के प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले 4.5 करोड़ लोगों के खिलाफ...

‘यहां तक  कि भगवान गणेश की मूर्तियां भी विदेश से आती हैं, छोटी आंखों वाली गणेश की मूर्तियां जिनकी आंखें ठीक से खुलती भी नहीं हैं’- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 27 मई, 2025 यदि भारत के प्रधानमंत्री पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले 4.5 करोड़ लोगों के खिलाफ एक आहत करने वाली रूढि़वादिता का प्रचार कर सकते हैं  तो क्या आपको आश्चर्य है कि पूर्वोत्तर में रहने वाले साथी भारतीय नागरिकों पर ऐसा ही लेबल लगाया जाता है। कई लोगों को दशकों से नस्लीय पूर्वाग्रह और हिंसा का दंश झेलना पड़ रहा है। 

2014 में, अरुणाचल प्रदेश के एक किशोर छात्र पर दिल्ली में हमला कर उसकी हत्या कर दिए जाने के बाद बेज बरुआ समिति का गठन किया गया था। समिति ने एक शोध रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें पाया गया कि पूर्वोत्तर के 10 में से 9 लोगों को भारतीय महानगरों में नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उद्धृत एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि पूर्वोत्तर की तीन में से दो महिलाओं को अक्सर विभिन्न प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण मेघालय हनीमून की त्रासदी थी जो अहमदाबाद में हुई हृदय विदारक दुर्घटना तक समाचारों में छाई रही। सोशल मीडिया पर अप्रमाणित तथ्य और मनगढ़ंत रिपोर्टें प्रसारित होने लगीं, जिनमें उस राज्य को बदनाम किया गया, जहां कई प्राकृतिक रत्न हैं, जैसे कि एलीफैंट फाल्स, उमियम झील, डबल डैकर लिविंग रूट ब्रिज, मावस्मई गुफा और भी बहुत कुछ, न केवल मेघालय  बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत को बदनाम करने के लिए एक संगठित अभियान चलाया गया। आहार संबंधी आदतों से लेकर सामाजिक रीति-रिवाजों, शारीरिक बनावट से लेकर भाषा तक को निशाना बनाने वाले घृणित संदेश, कुछ भी प्रतिबंधित नहीं था।

पूर्वोत्तर भारत  के लोगों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाने के लिए सार्वजनिक डोमेन में बहुत कम आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध हैं, विशेष रूप से आतिथ्य, विमानन और स्वास्थ्य क्षेत्रों में। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एन.एस.एस.ओ.) के 2020 के आंकड़ों से पता चलता है कि पूर्वोत्तर भारत की चार में से एक महिला प्रवासी आतिथ्य क्षेत्र में कार्यरत हैं। 5 साल बाद यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता है। इसमें यह भी खुलासा हुआ है कि इनमें से अधिकांश लोग कम वेतन वाली, अनौपचारिक नौकरियों में लगे हैं तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं मिलता। पूर्वोत्तर से मेरा पुराना नाता और विशेष लगाव है। 1991 में मैंने विज्ञापन की नौकरी छोड़ दी और क्विज शो की मेजबानी शुरू कर दी। पहले कुछ वर्षों के दौरान, ये क्विज शो पूर्वोत्तर के गुवाहाटी, शिलांग, कोहिमा, इम्फाल, दीमापुर तथा कई अन्य शहरों में आयोजित किए गए।  ये कार्यक्रम इंस्टैंट नूडल्स के एक ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए गए थे, जिसकी उन इलाकों में बड़ी बाजार हिस्सेदारी थी। प्रत्येक शो के लिए मेरी प्रोफैशनल फीस 2500 रुपए थी। हवाई  यात्रा, रेलगाडिय़ां, बसें, अधिकतर कार की सवारी, यह बहुत कुछ जानने का एक सुंदर अवसर था। इसलिए यह देखकर बहुत दुख होता है कि लोग पूर्वोत्तर के नागरिकों को एक ही तरह से चित्रित कर रहे हैं।

यह लेख लिखते समय मैंने मणिपुर की 30 वर्षीय महिला तोनशिमला लीसन से बात की जो एक प्रतिष्ठित एयरलाइन में कैबिन क्रू के रूप में काम करती हैं। उन्होंने मुझे बताया, ‘‘एक साल पहले, दिल्ली मैट्रो में युवाओं का एक समूह मुझे और मेरी मां को देखता रहा और हंसता रहा और मैंने उन्हें चाइनीज,चिंकीज कहते हुए सुना। कार्यस्थल पर, हमारे सहकर्मियों द्वारा हमारे अनोखे नामों का मजाक उड़ाना एक और चुनौती है जिसका हमें सामना करना पड़ता है। कई यात्री हमारी मेहनत और लचीले स्वभाव के लिए हमें प्रेरित करते हैं, लेकिन अन्य अक्सर हमें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।’’ एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए.आई.171 के दो कैबिन क्रू सदस्य, लामनुनथेम सिंगसन और कोंगब्राइलाटपम नगनथोई शर्मा, मणिपुर के थे। कुकी, जो समुदाय से लैमनुनथेम, मैतेई समुदाय से कोंगब्रिलाटपम। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कुकी कौन था और मैतेई कौन था। मणिपुर शोक में एकजुट था।

महामारी के दौरान 8 बहनों (राज्यों) के निवासियों के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव कई गुना बढ़ गया। भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद   द्वारा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के अपराध विज्ञान एवं पीड़ित विज्ञान केंद्र द्वारा पूर्वोत्तर के लोगों के विरुद्ध नस्लीय भेदभाव पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि ‘पूर्वोत्तर भारत भारतीयों की चीनी लोगों की कल्पना के अनुरूप है’ तथा ‘उन्हें अपने विरुद्ध घृणा और पूर्वाग्रहों की बढ़ती घटनाओं का सामना करना पड़ा’। हाल ही में संसद में मणिपुर पर दो बार चर्चा हुई। एक बार जब विपक्षी दलों ने 2023 में अविश्वास प्रस्ताव लाकर केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मजबूर किया था और एक बार, अप्रैल 2025 में पूरी रात चर्चा की गई थी। इस साल अप्रैल में  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा था,‘‘13 फरवरी 2025 को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, नवंबर में शून्य हिंसा, दिसंबर में शून्य हिंसा, जनवरी में शून्य हिंसा, 13 मार्च तक शून्य हिंसा और तब से लेकर आज तक शून्य हिंसा हुई। इसलिए हमें गलत धारणाएं पैदा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए’’।

गृह मंत्री के बोलने से ठीक पहले, आपके स्तंभकार ने राज्यसभा में जो कहा, वह इस प्रकार है,‘‘तीन लाख अस्सी हजार किलोमीटर। पिछले 22 महीनों में  यह वह दूरी है जो भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तय की है। यह पृथ्वी ग्रह से चंद्रमा तक की दूरी भी है! लेकिन प्रधानमंत्री मणिपुर के लिए उड़ान नहीं भर सके  जो कि केवल 2400 किलोमीटर दूर है। हम इस पर संसद में रात के अंधेरे में, सुबह के तीन बजे चर्चा कर रहे हैं। कोई टी.वी. चैनल नहीं, कोई प्राइम टाइम नहीं। दिन में मणिपुर को सीधे आंखों में देखिए।’’(अतिरिक्त शोध:आयुष्मान डे)-डेरेक ओ’ब्रायन(संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)
 

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