बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 386 परियोजनाओं की लागत 4.7 लाख करोड़ रुपए बढ़ी

Edited By jyoti choudhary,Updated: 28 Aug, 2022 11:06 AM

cost of 386 infrastructure projects increased by rs 4 7 lakh crore

बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक के खर्च वाली 386 परियोजनाओं की लागत तय अनुमान से 4.7 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ गई है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और अन्य कारणों से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है।

नई दिल्लीः बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक के खर्च वाली 386 परियोजनाओं की लागत तय अनुमान से 4.7 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ गई है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और अन्य कारणों से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपए या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है। 

मंत्रालय की जुलाई, 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,505 परियोजनाओं में से 386 की लागत बढ़ गई है, जबकि 661 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इन 1,505 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 21,21,793.23 करोड़ रुपए थी लेकिन अब इसके बढ़कर 25,92,537.79 करोड़ रुपए हो जाने का अनुमान है। इससे पता चलता है कि इन परियोजनाओं की लागत 22.19 प्रतिशत यानी 4,70,744.56 करोड़ रुपए बढ़ गई है।'' रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई, 2022 तक इन परियोजनाओं पर 13,50,275.69 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 52.08 प्रतिशत है। 

हालांकि, मंत्रालय ने कहा है कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें तो देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या कम होकर 511 पर आ जाएगी। वैसे इस रिपोर्ट में 581 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही 661 परियोजनाओं में से 134 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने, 114 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 289 परियोजनाएं 25 से 60 महीने की और 124 परियोजनाएं 61 महीने या अधिक की देरी से चल रही हैं। इन 661 परियोजनाओं में हो रहे विलंब का औसत 41.83 महीने है। 

इन परियोजनाओं में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है। इनके अलावा परियोजना का वित्तपोषण, विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिए जाने में विलंब, परियोजना की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि की वजह से भी इन परियोजनाओं में विलंब हुआ है।

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