5 महीने के निचले स्तर पर पहुंची सोने की कीमतें, जानें चांदी में कितनी आई गिरावट

Edited By jyoti choudhary,Updated: 01 Dec, 2020 01:19 PM

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देश में कोरोना वैक्सीन आने की उम्मीद से अर्थव्यवस्था में तेजी आने की संभावना है, जिसकी वजह से सोने के भाव में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। कोरोना वैक्सीन की उम्मीद ने सेफ निवेश वाली संपत्तियों को प्रभावित किया है। सोने की कीमतें सोमवार को  5 महीने...

बिजनेस डेस्कः देश में कोरोना वैक्सीन आने की उम्मीद से अर्थव्यवस्था में तेजी आने की संभावना है, जिसकी वजह से सोने के भाव में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। कोरोना वैक्सीन की उम्मीद ने सेफ निवेश वाली संपत्तियों को प्रभावित किया है। सोने की कीमतें सोमवार को  5 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गईं। इस समय निवेशक सोने में पैसा निकाल कर शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं, जिसकी वजह से गोल्ड के रेट्स में गिरावट देखने को मिल रही है।

2 जुलाई के निचले स्तर पर पहुंचा गोल्ड 
सोमवार को हाजिर सोना 0.8 फीसदी टूटकर 1,774.01 डॉलर प्रति आउंस पर आ गया और इस तरह से इस महीने सोने की गिरावट 5.6 फीसदी पर पहुंच गई। इसके साथ ही कीमती धातु ने कारोबारी सत्र के दौरान 2 जुलाई के बाद का सबसे निचला स्तर 1,764.29 डॉलर प्रति आउंस भी छू लिया था।

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डॉलर, ट्रेजरी से भी हो रही निकासी
अमेरिकी गोल्ड फ्यूचर 0.6 फीसदी टूटकर 1,771.20 डॉलरप्रति आउंस पर आ गया। एक्सपर्ट क्रेग अरलम ने कहा, वैक्सीन की खबर से बाजार में काफी आशावाद देखा गया है और हम डॉलर, ट्रेजरी की तरह सुरक्षित ठिकाने वाली परिसंपत्तियों से कुछ निकासी देख रहे हैं और ये चीजें सोने की कीमतों में प्रतिबिंबित हुई हैं।

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जानें चांदी में कितनी आई गिरावट
मंथली आधार पर चांदी में 5.5 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। इसके अलावा सोमवार को चांदी 1.6 फीसदी गिरकर 22.34 डॉलर प्रति औंस पर आ गई थीं। प्लैटिनम की बात करें तो यह 1.3 फीसदी बढ़कर 975.84 डॉलर पर आ गया था जबकि पैलेडियम 0.7 फीसदी फिसलकर $2,407.51 पर आ गया।

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ऐक्टिवट्रेड्स के एक्सपर्ट कार्लो अलबर्टो डी कासा ने एक नोट में कहा, कीमती धातु के अल्पावधि के ट्रेंड ने घटती कीमत के साथ समझौता कर लिया है, हालांकि इसका समर्थन का स्तर 1,850 डॉलर है। इसमें कहा गया है कि निवेशकों ने अन्य परिसंपत्तियों का रुख किया, जो ज्यादा तेजी से फायदा दे रहे हों। हालांकि उन्हें याद है कि केंद्रीय बैंक कोविड संकट से उबरने के लिए कई साल तक नोट छापने के लिए बाध्य होंगे ताकि अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सके। 

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