बिना रसीद का सोना बढ़ा देगा आपकी मुसीबत

Edited By Supreet Kaur,Updated: 09 Dec, 2019 10:32 AM

gold without receipt will increase your trouble

सोने को लेकर भारतीयों में खासा आकर्षण रहा है। इसके बावजूद सोने की पक्की रसीद न लेने और बगैर हॉलमार्क वाली ज्यूलरी को हम ज्यादा तरजीह देते हैं। पक्की रसीद आपको आयकर की कई तरह की मुसीबतों से बचा सकती है, वहीं हॉलमार्क सोना बे...

नई दिल्लीः सोने को लेकर भारतीयों में खासा आकर्षण रहा है। इसके बावजूद सोने की पक्की रसीद न लेने और बगैर हॉलमार्क वाली ज्यूलरी को हम ज्यादा तरजीह देते हैं। पक्की रसीद आपको आयकर की कई तरह की मुसीबतों से बचा सकती है, वहीं हॉलमार्क सोना बेचने पर आपको वाजिब दाम दिलाने में मददगार है। ज्यादातर ज्यूलर्स सस्ते का लालच देकर बगैर हॉलमार्किंग और रसीद के बगैर सोना खरीदने की पेशकश करते हैं जो बाद में महंगा पड़ सकता है। सरकार ने वर्ष 2021 से हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है। पेश है एक रिपोर्ट-

रसीद और टैक्स का नाता
सरकार की वर्ष 2016 की एक अधिसूचना के मुताबिक विवाहित महिला 500 ग्राम और अविवाहित महिला 250 ग्राम तक सोने की ज्यूलरी घर में रख सकती है। वहीं पुरुषों के मामले में यह सीमा 100 ग्राम है। इससे अधिक ज्यूलरी घर में पाए जाने और आयकर जांच में इसका खुलासा होने पर आप पर आयकर विभाग कार्रवाई कर सकता है। क्लीयर टैक्स के संस्थापक और सी.ई.ओ. अर्चित गुप्ता का कहना है कि सोने की रसीद रहने पर उसके स्रोत को लेकर आप आयकर विभाग को आसानी से जवाब दे सकते हैं। गुप्ता का कहना है कि किसी भी स्रोत से आपकी सालाना आय 50 लाख रुपए से ज्यादा है तो उस स्थिति में आयकर रिटर्न में सोने की मात्रा और उसकी कीमत की जानकारी देना भी अनिवार्य है।

वंशानुगत सोने का दाम ऐसे निकालें
देश में ज्यादातर लोगों के पास कई पीढिय़ों से मिलती आ रही ज्यूलरी और सोने की मात्रा अधिक है। इसे वंशानुगत सम्पत्ति कहते हैं। इसकी रसीद सामान्यत: नहीं होती। साथ ही वह जब खरीदा गया है उस वक्त की कीमत भी मालूम नहीं होती। गुप्ता का कहना है कि आयकर रिटर्न में जरूरत पडऩे पर इसका स्रोत और कीमत बतानी पड़ती है। इसमें वसीयत भी सहायक होती है लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। ऐसे में इसका एक बेहतर विकल्प भी है। गुप्ता का कहना है कि ऐसी ज्यूलरी या सोने का दाम आपको पता नहीं है तो सरकारी नियमों के मुताबिक 1 अप्रैल 2001 के आधार पर उसका दाम तय करवा सकते हैं।

ज्यूलरी खरीदते समय बी.आई.एस. हॉलमार्क जरूर देखें
असली सोने की पहचान करना आसान नहीं होता, खासतौर से आम आदमी के लिए। लेकिन कुछ सावधानियां बरत कर आप गलत चीज खरीदने से बच सकते हैं। सबसे अच्छा है हॉलमार्क देखकर सोना खरीदें। हॉलमार्क सरकारी गारंटी है। हॉलमार्क का निर्धारण भारत की एकमात्र एजैंसी ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बी.आई.एस.) करती है। हॉलमार्किंग में किसी उत्पाद को तय मापदंडों पर प्रमाणित किया जाता है। भारत में बी.आई.एस. वह संस्था है, जो उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराए जा रहे गुणवत्ता स्तर की जांच करती है। सोने के सिक्के या गहने कोई भी सोने का आभूषण जो बी.आई.एस. द्वारा हॉलमार्क किया गया है, उस पर बी.आई.एस. का लोगो लगाना जरूरी है। इससे पता चलता है कि बी.आई.एस. की लाइसैंस प्राप्त प्रयोगशालाओं में इसकी शुद्धता की जांच की गई है लेकिन कई ज्यूलर्स बिना जांच प्रक्रिया पूरी किए ही हॉलमार्क लगा रहे हैं। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि हॉलमार्क असली है या नहीं? असली हॉलमार्क पर भारतीय मानक ब्यूरो का तिकोना निशान होता है। उस पर हॉलमार्किंग केन्द्र के लोगो के साथ सोने की शुद्धता भी लिखी होती है। उसी में ज्यूलरी निर्माण का वर्ष और उत्पादक का लोगो भी होता है।

स्वर्ण मौद्रिकरण में भी रसीद फायदेमंद  
स्वर्ण मौद्रिकरण योजना (जी.एम.एस.) की शुरूआत 2015 में की गई थी। इस साल की शुरूआत में आर.बी.आई. ने स्वर्ण मौद्रिकरण योजना को आकर्षक बनाने के लिए कुछ बदलाव किए थे। पहले यह योजना व्यक्तिगत एवं संयुक्त जमाकत्र्ताओं के लिए खुली थी। बैंक ने इसमें परमार्थ सेवाएं देने वाले संस्थानों और केंद्र सरकार समेत अन्य को भी शामिल किया है। यह योजना बैंकों के ग्राहकों को निष्क्रिय पड़े सोने को निश्चित अवधि के लिए जमा करने की अनुमति देती है। इस पर उसे 2.50 फीसदी तक का ब्याज मिलता है। स्वर्ण मौद्रिकरण योजना का दीर्घकालिक उद्देश्य यह है कि इस तरह की व्यवस्था बनाई जाए जिसके तहत सोने के आयात पर देश की निर्भरता कम हो और घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। जी.एम.एस. से भारतीय रत्न एवं आभूषण क्षेत्र को फायदा होगा। यह क्षेत्र भारत के आयातों में प्रमुख योगदान करता है। भारत के कुल निर्यातों में रत्नों एवं आभूषणों का लगभग 12 प्रतिशत योगदान होता है जिनमें अकेले स्वर्ण सामग्रियों का मूल्य लगभग 13 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक रहता है। एकत्र स्वर्ण के इस्तेमाल से न केवल भारतीय रिजर्व बैंक के स्वर्ण भंडार में इजाफा होगा बल्कि सरकार की उधार लागत भी कम होगी।

ज्यादा महंगी नहीं हॉलमार्क ज्यूलरी
हॉलमार्क की वजह से ज्यदा महंगा होने के नाम पर ज्वैलर आपको बगैर हॉलमार्क वाली सस्ती ज्यूलरी की पेशकश करता है तो सावधान हो जाइए। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रति ज्यूलरी हॉलमार्क का खर्च महज 35 रुपए आता है। इस बात का भी ध्यान रखें कि असली सोना 24 कैरेट का ही होता है, लेकिन इसकी ज्यूलरी नहीं बनती है, क्योंकि वह बेहद मुलायम होता है। आम तौर पर आभूषणों के लिए 22 कैरेट सोने का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें 91.66 फीसदी सोना होता है। हॉलमार्क पर 5 अंक होते हैं। सभी कैरेट का हॉलमार्क अलग होता है। मसलन 22 कैरेट पर 916, 21 कैरेट पर 875 और 18 पर 750 लिखा होता है। इससे शुद्धता में शक नहीं रहता। गोल्ड खरीदते वक्त आप ऑथैंटिसिटी/प्योरिटी सर्टीफिकेट लेना न भूलें। सर्टीफिकेट में गोल्ड की कैरेट गुणवत्ता भी जरूर चैक कर लें। साथ ही सोने की ज्यूलरी में लगे जैम स्टोन के लिए भी एक अलग सर्टीफिकेट जरूर लें।

आसानी से मिलता है गोल्ड लोन  
कई बैंक और एन.बी.एफ.सी. एक घंटे से भी कम समय में गोल्ड लोन दे देती हैं। इस पर ब्याज भी पर्सनल लोन के मुकाबले कम होता है। लोन देने के पहले बैंक आमतौर पर सिबिल स्कोर को बहुत अधिक तरजीह देते हैं लेकिन गोल्ड लोन के मामले में इसे बहुत अधिक महत्व नहीं देते। सोने की रसीद होने और हॉलमार्क होने पर आपको लोन भी ज्यादा मिल जाता है। उपभोक्ता जरूरत बिना हॉलमार्क वाली ज्वैलरी लेकर बैंक के पास जाते हैं और वहां जांच में शुद्धता बेहद कम मिलती है तो उन्हें झटका लगता है। ऐसे में रसीद और हॉलमार्क को नजरअंदाज न करें।

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!