Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Jun, 2025 07:00 AM

drinath Dham: बद्रीनाथ धाम के कपाट इस साल 4 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। अब भक्तगण भगवान बद्री नारायण के दर्शन के लिए इस पवित्र स्थल की यात्रा कर सकते हैं। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में बद्रीनाथ धाम का विशेष महत्व माना गया है।
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Badrinath Dham: बद्रीनाथ धाम के कपाट इस साल 4 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। अब भक्तगण भगवान बद्री नारायण के दर्शन के लिए इस पवित्र स्थल की यात्रा कर सकते हैं। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में बद्रीनाथ धाम का विशेष महत्व माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु को समर्पित है, और यहां उनके रूप में बद्री नारायण की पूजा होती है। इसी कारण लोग बद्रीनाथ को धरती का वैकुण्ठ भी कहते हैं क्योंकि मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं विराजते हैं। वैकुण्ठ वह दिव्य लोक है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और बद्रीनाथ धाम को उसका प्रतीक माना गया है।
इस तीर्थ का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्व है। माना जाता है कि यहां दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। हिमालय की गोद में बसा यह धाम शांति, भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम है। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालु हर वर्ष यहाँ आकर भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं और जीवन को धन्य मानते हैं।

क्यों कहा जाता है बद्रीनाथ धाम को वैकुण्ठ
बद्रीनाथ धाम को चार धामों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इसे धरती का वैकुण्ठ कहा जाता है क्योंकि यह स्थान भगवान विष्णु का निवास स्थल माना जाता है। हिंदू धार्मिक परंपराओं में इसका अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु अपने जीवन में एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इसे मोक्ष की प्राप्ति माना जाता है। इसीलिए यह स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही दिव्य और पूजनीय माना जाता है। कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु का साक्षात अनुभव होता है और भक्तों को ईश्वर की कृपा का आभास होता है। यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आकर इस पवित्र धाम के दर्शन करते हैं और इसे आत्मिक शांति व मोक्ष का मार्ग मानते हैं।

इस रूप में विराजते हैं भगवान नारायण
बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा बद्री नारायण के स्वरूप में होती है। यहां उनकी एक खास मूर्ति स्थापित है, जो लगभग एक मीटर ऊंची और काले पत्थर से बनी हुई है। यह मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है, यानी यह स्वयमेव प्रकट हुई थी। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इस मूर्ति को नारद कुंड से प्राप्त कर मंदिर में प्रतिष्ठित किया था।
इस मूर्ति में भगवान विष्णु ध्यान में लीन पद्मासन मुद्रा में विराजमान दिखाई देते हैं। मूर्ति के दाहिनी ओर देवी लक्ष्मी, कुबेर और नारायण की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं, जो इस स्थान को और भी पवित्र बनाती हैं।
भगवान की यह प्रतिमा विष्णु जी की उन आठ मूर्तियों में से एक मानी जाती है, जो स्वयं प्रकट हुई हैं। मंदिर के गर्भगृह में ज्यादातर स्थान पर आपको सिर्फ जलते हुए दीये नजर आएंगे, जो एक शांत, भक्तिमय वातावरण बनाते हैं।
