Edited By Sarita Thapa,Updated: 09 May, 2025 01:04 PM

Chapekar Brothers: एक बार पूना में प्लेग रोग फैल गया। उसके निवारण का बहाना बनाकर तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने ऐसे कड़े कदम उठाए कि जनता त्राहि-त्राहि कर उठी। मि. रेंड नामक एक अंग्रेज अधिकारी लोगों का अपमान और अत्याचार करने में सबसे आगे था।
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Chapekar Brothers: एक बार पूना में प्लेग रोग फैल गया। उसके निवारण का बहाना बनाकर तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने ऐसे कड़े कदम उठाए कि जनता त्राहि-त्राहि कर उठी। मि. रेंड नामक एक अंग्रेज अधिकारी लोगों का अपमान और अत्याचार करने में सबसे आगे था। महान क्रांतिकारी दामोदर चाफेकर बंधुओं ने अंग्रेजों के अत्याचारों का बदला लेने का निश्चय किया और मि. रेंड को दिन-दहाड़े गोलियों से भून डाला।

मुकदमे के बाद तीनों को फांसी की सजा सुना दी गई। इस घटना से देश में उनकी मां के प्रति बहुत गहरी सहानुभूति उमड़ी। फांसी के बाद स्वामी विवेकानंद की प्रमुख शिष्या सिस्टर निवेदिता उनकी मां को सांत्वना देने के विचार से पुणे पहुंचीं। उनका अनुमान था कि चाफेकर बंधुओं की मां बहुत दुखी होंगी। तीनों पुत्र शहीद हो गए थे। बुढ़ापे की लाठी टूट गई थी। किंतु जब सिस्टर निवेदिता उनके मकान पर पहुंची तो उनके स्वागत में वह हाथ जोड़कर सामने खड़ी मिली।

उस वीरमाता के धैर्य को देखकर सिस्टर की आंखें भर आईं। मां ने सिस्टर निवेदिता से सादर कहा, “सिस्टर, आप तपस्विनी हैं। आपने तो संसार की मोह-माया त्याग दी है, फिर आपकी आंखों में ये मोह के आंसू क्यों?
आप विश्वास रखें, मुझे तो गौरव है कि मेरे तीनों बेटे देश के लिए बलिदान हुए। दुख है तो केवल इतना कि मेरी और कोई संतान नहीं है, जिसे मैं देश को दे सकूं।”
इतना कहते-कहते उसकी आंखें लाल हो उठीं। मुट्ठियां बंध गईं। सिस्टर निवेदिता से न रहा गया। वह उसके चरणों में झुककर रुंधे गले से बोलीं, “धन्य हो मां! जब तक किसी देश में ऐसी माताएं हैं, तब तक उसका कोई भी अहित नहीं कर सकता।”
