Edited By Sarita Thapa,Updated: 31 Dec, 2025 11:59 AM

जीवन में एक समय ऐसा आता है जब इंसान खुद को पूरी तरह अकेला महसूस करता है। कभी किसी गहरे रिश्ते में दरार आ जाती है, तो कभी वो लोग हाथ छोड़ देते हैं जिन पर हमें खुद से ज्यादा भरोसा होता है।
Devi Chitralekha Motivational Quotes : जीवन में एक समय ऐसा आता है जब इंसान खुद को पूरी तरह अकेला महसूस करता है। कभी किसी गहरे रिश्ते में दरार आ जाती है, तो कभी वो लोग हाथ छोड़ देते हैं जिन पर हमें खुद से ज्यादा भरोसा होता है। ऐसी स्थिति में मन में निराशा, क्रोध और एकाकीपन घर कर लेता है। प्रसिद्ध आध्यात्मिक उपदेशिका देवी चित्रलेखा जी के विचारों में इस अकेलेपन का एक बहुत ही गहरा और सकारात्मक समाधान छिपा है। उनके संदेश हमें सिखाते हैं कि जब संसार के द्वार बंद होते हैं, तभी परमात्मा के द्वार खुलने का समय होता है।
अकेलेपन को एकांत बनाएं
देवी जी अक्सर कहती हैं कि दुनिया का साथ छूटना दुःख की बात नहीं है, बल्कि यह खुद से मिलने का एक अवसर है। जब बाहर का शोर कम होता है, तभी हम अपने अंदर की आवाज सुन पाते हैं। जिसे आप अकेलापन समझ रहे हैं, उसे एकांत की शक्ति में बदलें। यह वह समय है जब आप अपनी आत्मा को जान सकते हैं।
वो कभी हाथ नहीं छोड़ता
इंसानी रिश्तों की एक सीमा होती है, लेकिन ईश्वर के साथ हमारा रिश्ता अनंत है। देवी चित्रलेखा जी के अनुसार, जब दुनिया मुंह फेर लेती है, तो समझिए कि भगवान आपको यह याद दिला रहे हैं कि असली सहारा केवल 'वही' है। संसार स्वार्थ से जुड़ा हो सकता है, लेकिन कन्हैया का प्रेम निस्वार्थ है। जब कोई साथ न दे, तब अपना हाथ उस परमपिता को थमा दीजिए।

दूसरों से उम्मीदों का त्याग
हमारे दुःख का सबसे बड़ा कारण अपेक्षा है। हम चाहते हैं कि लोग हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम उनके साथ करते हैं। देवी जी का संदेश है कि अपनी खुशी की चाबी दूसरों के हाथ में न दें। जब आप दूसरों से उम्मीद करना छोड़ देते हैं, तो कोई आपको छोड़कर जाए या साथ रहे, आपको फर्क पड़ना बंद हो जाता है।
विदाई भी एक नई शुरुआत है
अगर कोई आपकी जिंदगी से चला गया है, तो उसे ईश्वर की मर्जी मानकर स्वीकार करें। कई बार भगवान उन लोगों को हमसे दूर कर देते हैं जो हमारी प्रगति या शांति में बाधा बन रहे होते हैं। देवी चित्रलेखा जी मानती हैं कि हर अंत एक नई और बेहतर शुरुआत का संकेत है।
भीतर की शक्ति को जगाएं
जब अपने साथ छोड़ देते हैं, तब आपकी आंतरिक शक्ति का परीक्षण होता है। भक्ति और सत्संग के माध्यम से अपने मन को इतना मजबूत बनाएं कि आपको किसी बाहरी सहारे की जरूरत ही न पड़े। स्वयं में पूर्ण होना ही सच्ची आध्यात्मिकता है।
