वृंदावन का ये मंदिर, उत्तर भारत में अपनी किस्म का एक ही नमूना है

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Mar, 2021 11:09 AM

govind devji temple vrindavan

गोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में स्थित वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण 1590 ईस्वी में हुआ था। इस मंदिर के शिलालेख से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को

Govind Devji Temple Vrindavan: गोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में स्थित वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण 1590 ईस्वी में हुआ था। इस मंदिर के शिलालेख से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को आमेर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मान सिंह ने बनवाया था। भारत के मंदिरों की शृंखला में आज हम आपको ले चलते हैं भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि वृंदावन में। कहा जाता है कि जहां आज भी भगवान कृष्ण राधा गोपियों के साथ नित्य विहार करते हैं। इसीलिए कहा है : वृंदावन के वक्ष कौ मरम न जाने कोय। डार-डार और पात-पात श्री राधे-राधे होय।।

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अर्थात वृंदावन के वृक्षों के बारे में कहा जाता है कि यहां प्रत्येक डाली पर ऋषि मुनि भगवान कृष्ण की आह्वादिनी शक्ति श्री राधे जी के ध्यान में लीन हैं और अपनी तपश्चर्या को पूर्ण कर रहे हैं। उसी वृंदारूपी वन में हजारों मंदिर आज भी मौजूद हैं। उन्हीं मंदिरों में से एक है श्री गोविंद देव का यह मंदिर जिसका निर्माण श्री रूप गोस्वामी और सनातन गुरु श्री कल्याणदास जी की देखरेख में हुआ।

श्री गोविंद देव जी मंदिर का पूरा निर्माण का खर्च राजा श्री मान सिंह के पुत्र राजा श्री भगवान दास, आमेर (जयपुर, राजस्थान) ने किया था। जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने इसे नष्ट करने की कोशिश की थी तब गोविंद देव जी को वृंदावन से ले जाकर जयपुर प्रतिष्ठित किया गया था। अब मूल देवता जयपुर में है।

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गोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में स्थित वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण 1590 ईस्वी में हुआ था। इस मंदिर के शिलालेख से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को आमेर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मान सिंह ने बनवाया था। रूप गोस्वामी एवं सनातन गोस्वामी नामक दो वैष्णव गुरुओं की देखरेख में मंदिर के निर्माण होने का उल्लेख भी मिलता है। प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स फग्र्यूसन ने लिखा है कि यह मंदिर भारत के मंदिरों में बड़ा शानदार है। मंदिर की भव्यता का अनुमान इस उद्धरण से लगाया जा सकता है कि औरंगजेब ने शाम को टहलते हुए दक्षिण पूर्व में दूर से दिखने वाली रोशनी के बारे में जब पूछा तो पता चला कि यह चमक वृंदावन के वैभवशाली मंदिरों की है।

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औरंगजेब मंदिर की चमक से परेशान था। समाधान के लिए उसने तुरंत कार्रवाई के रूप में सेना भेजी। मंदिर जितना तोड़ा जा सकता था उतना तोड़ा गया और शेष पर मस्जिद की दीवार, गुम्बद आदि बनवा दिए। कहते हैं कि औरंगजेब ने यहां नमाज में हिस्सा लिया।

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मंदिर का इतिहास
गोस्वामियों ने वृंदावन आकर पहला काम यह किया कि वृंदा देवी के नाम पर एक वृंदा मंदिर का निर्माण कराया। इसका अब कोई चिन्ह विद्यमान नहीं रहा। कुछ का कथन है कि यह सेवाकुंज में था। इस समय यह दीवार में घिरा हुआ एक उद्यान भर है। इसमें एक सरोवर है। यह रास मंडल के समीप स्थित है।

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इसकी ख्याति इतनी शीघ्र चारों ओर फैली कि सन 1573 ईस्वी में अकबर सम्राट यहां आंखों पर पट्टी बांधकर पावन निधिवन में आया था। यहां उसे ऐसे विस्मयकारी दर्शन हुए कि इस स्थल को वास्तव में धार्मिक भूमि की मान्यता उसे देनी पड़ी। उसने अपने साथ आए राजाओं को अपना हार्दिक समर्थन दिया कि इस पावन भूमि में स्थानीय देवता महनीयता के अनुरूप मंदिरों की एक शृंखला खड़ी की जाए। गोविंद देव, गोपीनाथ, जुगल किशोर और मदन मोहन जी के नाम से बनाए गए चार मंदिरों की शृंखला उसी स्मरणीय घटना के स्मृति स्वरूप अस्तित्व में आई।

वे अब भी हैं किन्तु नितांत उपेक्षित और भग्नावस्था में विद्यमान हैं। गोविंद देव का मंदिर इनमें से सर्वोत्तम तो था ही हिन्दू शिल्पकला का उत्तर भारत में यह अकेला ही आदर्श था।

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मंदिर निर्माण का खर्च एवं शैली
मंदिर को बनने में उस समय 5 से 10 वर्ष लगे और करीब एक करोड़ रुपया खर्चा बताया गया। सम्राट अकबर ने मंदिर निर्माण के लिए लाल पत्थर दिए। श्री ग्राउस के विचार से अकबरी दरबार के इसाई पादरियों ने जो यूरोप के देशों से आए थे इस निर्माण में स्पष्ट भूमिका निभाई। यह मिश्रित शिल्पकला का उत्तर भारत में अपनी किस्म का एक ही नमूना है। खजुराहो के मंदिर भी इसी शिल्प के हैं। हिन्दू (उत्तर-दक्षिण हिन्दुस्तान), जयपुरी, मुगल, यूनानी और गोथिक का मिश्रण है। इसका लागत मूल्य एक करोड़ रुपया (लगभग)। इसका माप 105और117 फुट (200और120 फुट बाहर से) व ऊंचाई 110 फुट (सात मंजिल थीं आज केवल चार ही मौजूद हैं)।

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