Hanuman Jayanti: हनुमान जी से डरता था रावण, पढ़ें रोचक कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Apr, 2020 09:01 AM

hanuman jayanti

रामायण का एक अद्भुत प्रसंग है। रावण की सारी सेना युद्ध में समाप्त हो चुकी थी। सभी बड़े योद्धा मारे जा चुके थे। रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर

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रामायण का एक अद्भुत प्रसंग है। रावण की सारी सेना युद्ध में समाप्त हो चुकी थी। सभी बड़े योद्धा मारे जा चुके थे। रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर रणभूमि में भेजने का आदेश दिया। ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सका था। विभीषण के गुप्तचरों से समाचार मिलने पर श्रीराम को चिंता हुई कि हम लोग इनसे कब तक लड़ेंगे?

श्रीराम की इस स्थिति से वानरवाहिनी के साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए कि अब क्या होगा? हम अनंतकाल तक युद्ध तो कर सकते हैं पर विजयश्री का वरण नहीं।

हनुमान जी श्रीराम को चिंतित देखकर बोले-प्रभो! क्या बात है?

श्रीराम के संकेत से विभीषण जी ने सारी बात बतलाई। अब विजय असंभव है। पवन पुत्र ने कहा, असंभव को संभव और संभव को असंभव कर देने का नाम ही तो हनुमान है। प्रभो! आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए, मैं अकेले ही जाकर रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूंगा।

कैसे? हनुमान! वे तो अमर हैं। भगवान राम ने कहा।

तब हनुमान जी बोले- प्रभो! इसकी चिंता आप न करें, सेवक पर विश्वास करें।

उधर रावण ने चलते समय राक्षसों से कहा था कि वहां हनुमान नाम का एक वानर है, उससे जरा सावधान रहना।

हनुमान जी को रणभूमि में एकाकी देखकर राक्षसों ने पूछा-तुम कौन हो? क्या हम लोगों को देखकर भय नहीं लगता? जो अकेले रणभूमि में चले आए।

हनुमानजी बोले- क्यों आते समय राक्षसराज रावण ने तुम लोगों को कुछ संकेत नहीं किया था जो मेरे समक्ष निर्भय खड़े हो।

निशाचरों को समझते देर न लगी कि ये महाबली हनुमान हैं। तो भी क्या? हम अमर हैं, हमारा यह क्या बिगाड़ लेंगे।

भयंकर युद्ध आरंभ हुआ, पवनपुत्र की मार से राक्षस रणभूमि में ढेर होने लगे, चौथाई सेना बची थी कि पीछे से आवाज आई- हनुमान हम लोग अमर हैं। हमें जीतना असंभव है। अत: अपने स्वामी के साथ लंका से लौट जाओ, इसी में तुम सबका कल्याण है।

आंजनेय ने कहा- लौटूंगा अवश्य पर तुम्हारे कहने से नहीं अपितु अपनी इच्छा से। हां तुम सब मिलकर आक्रमण करो फिर मेरा बल देखो और रावण को जाकर बताना।

राक्षसों ने जैसे ही एक साथ मिलकर हनुमान जी पर आक्रमण करना चाहा वैसे ही पवनपुत्र ने उन सबको अपनी पूंछ में लपेटकर ऊपर आकाश में फैंक दिया। वे सब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति जहां तक है वहां से भी ऊपर चले गए। उनका शरीर सूख गया, अमर होने के कारण।

इधर हनुमान जी ने आकर प्रभु के चरणों में शीश झुकाया। श्रीराम बोले-क्या हुआ हनुमान? प्रभो! उन्हें ऊपर भेजकर आ रहा हूं।

राघव- पर वे अमर थे हनुमान। हां स्वामी इसलिए उन्हें जीवित ही ऊपर भेज आया हूं अब वे कभी भी नीचे नहीं आ सकते। रावण को अब आप शीघ्रातिशीघ्र ऊपर भेजने की कृपा करें जिससे माता जानकी का आपसे मिलन और महाराज विभीषण का राजसिंहासन पर अभिषेक हो सके।

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