Jyeshtha Purnima: तन-मन की शांति के लिए इस विधि से करें ज्येष्ठ पूर्णिमा की पूजा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jun, 2025 07:41 AM

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Jyeshtha Purnima 2025: ज्येष्ठ पूर्णिमा को ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार इस तिथि पर अत्रि मुनि ने चन्द्रमा को पुत्र रूप में प्राप्त किया था। इस तिथि पर चन्द्रमा का विशेष पूजन करना...

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Jyeshtha Purnima 2025: ज्येष्ठ पूर्णिमा को ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार इस तिथि पर अत्रि मुनि ने चन्द्रमा को पुत्र रूप में प्राप्त किया था। इस तिथि पर चन्द्रमा का विशेष पूजन करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार यह तिथि अनेक सिद्धों की तपस्या की पूर्णता का दिन है। ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात्रि को सप्तऋषि मंडल की ऊर्जा पृथ्वी से विशेष रूप से जुड़ती है। इस कारण ध्यान और ब्रह्ममुहूर्त की साधना अत्यंत फलदायक मानी जाती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कला में होते हैं। मन की स्थिरता, ध्यान और स्मृति का संबंध चन्द्रमा से है। इस दिन उपवास, ध्यान और त्राटक करने से मानसिक शांति तीव्रता से प्राप्त होती है।

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मनोगत कर्म-शुद्धि की रात्रि
तंत्रसार में वर्णित है कि यह तिथि मनोगत विकारों की शुद्धि के लिए उपयुक्त होती है। यदि कोई व्यक्ति चन्द्रमा को अर्घ्य देकर “ॐ सोम सोमाय नमः” मंत्र से ध्यान करता है, तो उसके चित्तदोष शुद्ध होते हैं जैसे ईर्ष्या, असंतोष और मोह।

शाक्त साधना में पूर्ण सौम्य रात्रि
श्रीविद्या परंपरा में ज्येष्ठ पूर्णिमा को शक्तिपात की योग रात्रि कहा गया है। देवी ललिता की उपासना, यंत्र-पूजन या कुंडलिनी जागरण की क्रियाएं इस रात में शीघ्र सिद्ध होती हैं। यह रात्रि पूर्ण सौम्य तिथि कही जाती है क्योंकि इसमें तमोगुण अत्यंत न्यून होता है।

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चन्द्र मनः शांति प्रयोग
रात्रि 12 बजे जल से भरे तांबे के पात्र में चन्द्रमा को देखते हुए निम्न मंत्र 108 बार बोलें:
ॐ सोम सोमाय नमः

तत्पश्चात उस जल से मुख प्रक्षालन करें, यह स्मरण शक्ति, मनःशक्ति और शीतलता को बढ़ाता है।

ब्रह्ममुहूर्त में करें ये विशेष साधना
सुबह 4:00 से 4:30 के बीच शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करके आसन पर बैठकर संकल्प करें।

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ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात की जाने वाली साधना प्रक्रिया
7 बार गहरी श्वास लें, श्वास पर ध्यान केंद्रित करें। मन में चन्द्रमा के शीतल प्रकाश की कल्पना करें जो आपके मस्तिष्क पर पड़ रहा है।

अब यह बीज मंत्र 108 बार जपें
ॐ सोम सोमाय स्वाहा।
प्रत्येक जप के साथ कल्पना करें कि आपका मन शांत हो रहा है, विकार पिघल रहे हैं।

पूर्णिमा की रात करें ये ध्यान प्रक्रिया
रात 10:30 से 11:00 के बीच उत्तर-पूर्व दिशा में चन्द्रमा की ओर मुख करके बैठें, यदि प्रत्यक्ष न दिखे तो मानसिक कल्पना करें।  अपना मन को चन्द्र साधना में केंद्रित करें।

प्रत्येक जप पर कल्पना करें कि शीतल ऊर्जा आपकी आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य) पर प्रवाहित हो रही है। यह मंत्र मानसिक रूप से जपें:
ॐ शीतांशवे नमः।

15 मिनट के बाद शांति से अपने चित्त में यह भावना रखें: मेरा मन निर्मल है, स्मृति तेजस्वी है, मोह नष्ट हुआ है।

जिनकी कुंडली में चन्द्रमा कमजोर हो या मनोविकार (anxiety, restlessness) से पीड़ित हों उनके लिए यह रात्रि ध्यान विशेष रूप से फलदायी है। जो छात्र, साधक या लेखक हैं उनके लिए स्मरण व कल्पना शक्ति बढ़ती है।

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