Mahabharat: दानवीर कर्ण की इस बात के श्रीकृष्ण भी थे कायल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Mar, 2024 09:50 AM

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दानवीरों की चर्चा में एक बार श्रीकृष्ण, पांडवों से बोले कि उन्होंने कर्ण जैसा दानवीर नहीं देखा, न ही सुना। पांडवों को यह

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Mahabharat: दानवीरों की चर्चा में एक बार श्रीकृष्ण, पांडवों से बोले कि उन्होंने कर्ण जैसा दानवीर नहीं देखा, न ही सुना। पांडवों को यह बात पसंद नहीं आई। भीम ने पूछ लिया, कैसे ? श्रीकृष्ण ने कहा कि समय आने पर बताऊंगा। बात आई गई हो गई।

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कुछ दिनों बाद सावन शुरू हो गया और वर्षा की झड़ी लग गई। उस समय एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला, महाराज मैं आपके राज्य में रहने वाला ब्राह्मण हूं। मैं बिना हवन किए कुछ भी नहीं खाता-पीता। मेरे पास यज्ञ के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है। आपके पास हो तो मुझ पर कृपा करें, अन्यथा मैं भूखा-प्यासा मर जाऊंगा।

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युधिष्ठिर ने तुरन्त कर्मचारी को बुलवाया और लकड़ी देने के लिए कहा। लकड़ी के भंडार में सूखी लकड़ी नहीं थी। उसके बाद महाराज ने भीम और अर्जुन को चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया, मगर सूखी लकड़ी नहीं मिली।

ब्राह्मण को हताश देखकर श्रीकृष्ण ने कहा, मेरे साथ आइए। भगवान ने अर्जुन और भीम को भी इशारा किया तो वे दोनों भी वेश बदलकर ब्राह्मण  के संग हो लिए। कृष्ण सबको लेकर कर्ण के महल में गए। ब्राह्मण ने वहां जाकर लकड़ी की अपनी वही मांग दोहराई। कर्ण ने अपने भंडार के मुखिया को बुलाकर सूखी लकड़ी देने के लिए कहा, पर वहां भी वही जवाब पाकर ब्राह्मण निराश हो गया।

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इसके बाद कर्ण ने कहा कि आप निराश न होएं। उसने अपने महल के खिड़की, दरवाजे में लगी चंदन की लकड़ी काट कर ढेर लगा दिया, फिर ब्राह्मण से कहा कि आपको जितनी लकड़ी चाहिए, कृपया ले जाइए। ब्राह्मण लकड़ी लेकर कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ लौट गया।

पांडव और कृष्ण भी लौट आए। वापस आकर भगवान ने कहा कि साधारण अवस्था में दान देना कोई विशेष बात नहीं है। असाधारण परिस्थिति में किसी के लिए अपने सर्वस्व को त्याग देने का नाम ही दान है।

 

 

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