इस मंदिर में जलेबी चढ़ाने से जल्द होती है शादी, ऐसी विराजी थी मथुरा में महालक्ष्मी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Jan, 2018 01:31 PM

mahalakshmi temple in mathura

मथुरा: तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां पर जलेबी के जोड़े से भी पूजन होता है। श्री महालक्ष्मी जुड़ीवाली देवी के नाम से मशहूर यह देवी मंदिर यमुना किनारे गऊघाट पर लाल दरवाजा क्षेत्र में स्थित है जहां पहुंचने के लिए शहर के...

मथुरा: तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां पर जलेबी के जोड़े से भी पूजन होता है। श्री महालक्ष्मी जुड़ीवाली देवी के नाम से मशहूर यह देवी मंदिर यमुना किनारे गऊघाट पर लाल दरवाजा क्षेत्र में स्थित है जहां पहुंचने के लिए शहर के व्यस्ततम मार्ग चौक बाजार से होकर जाना होता है। यह मंदिर कुंवारे या कुंवारियों के लिए वरदान माना जाता है। मंदिर के महंत अशोक शर्मा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जिन युवकों या युवतियों के विवाह नही होते थे वे यहां आकर पूजा करते है और वे शादी के बंधन में बध जाते है। पूजन सामग्री में जहां दूध, कलावा, धनिया, रोली चावल, दीपक, फूलमाला जैसी पूजन सामग्री का प्रयोग होता है वहीं दो जलेबी के जोड़े तथा डंठल में जुड़ें दो केलों का होना आवश्यक है। इस मंदिर का इतिहास भी निराला है। इस मंदिर का मुख्य श्रीविग्रह स्वयं प्राकट्य है।

 

महंत शर्मा ने बताया कि सैकड़ों साल पहले रघुनाथ दास को तीन दिन स्वप्न हुए थे। पहले स्वप्न में देवी ने उनसे कहा था कि वे यमुना किनारे अमुक स्थान पर मूर्ति के रूप में विराजमान हैं तथा उन्हें बाहर निकालकर पूजन करो। देवी ने यह भी कहा था कि वे जनकल्याण के लिए बाहर आना चाहती हैं। उन्होंने बताया कि स्वप्न के अनुसार जब रघुनाथ दास शर्मा ने खुदाई शुरू कराई तो उसी रात फिर देवी ने उन्हें स्वप्न दिया कि फावड़े से खुदाई कराने की जगह खुरपी से धीरे धीरे खुदाई कराएं, क्योकि यदि खुदाई के दौरान मूर्ति खडित हो गई तो उन्हें बहुत अधिक दंड भुगतना होगा तथा जिस जन कल्याण के लिए वे बाहर आना चाहती है वह कार्य पूरा न हो सकेगा। इसके बाद मूर्ति को बहुत सावधानी से खुरपी से एक एक इंच खोदकर निकाला गया। अभी इस मूर्ति के स्थापित करने और मंदिर बनाने की बात चल ही रही थी तथा कई विकल्प खोजे जा रहे थे तभी देवी ने एक बार पुन: रघुनाथ दास शर्मा को स्वप्न दिया कि वे यहां से कहीं नही जाएंगी और जहां से उन्हें निकाला गया है ठीक उसी स्थान पर उन्हें प्रतिस्थापित कर मंदिर बनाया जाना चाहिए।

 

इस मंदिर की प्रतिमा में देवताओं और असुरों द्वारा किए गए सागर मंथन में निकली लक्ष्मी के स्वरूप का साक्षात दर्शन है। मोहिनी स्वरूप में इस प्रतिमा में देवी जी एक कलश को दोनो हाथों से पकड़े हुए हैं तथा दोनो हाथ सिर के ऊपर हैं और कलश में अमृत भरा है जिसका पान करने के लिए सभी लालायित रहते है। श्री शर्मा के अनुसार देवी का आशीर्वाद स्वरूप अमृत उसे ही मिलता है जो पूरी श्रद्धा और पूरी निष्ठा तथा भक्ति भाव से देवी का पूजन करता है। उन्होंने बताया कि इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोंद्धार दो वर्ष पूर्व कराया जा चुका है। जिन्होंने इसका जीर्णोद्धार कराया था उनका परिवार सुखी होने के साथ भक्ति भाव में रंग गया है। महंत शर्मा के अनुसार इस मंदिर में गुरूवार और रविवार को विशेष पूजा होती है तथा शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी की पूजा होती है। इन तीन दिनों में यहां पर अमृत की विशेष वर्षा होती है किंतु वह उस भक्त को ही मिलती है जो भक्ति से ओतप्रोत होता है।


 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!