Edited By Sarita Thapa,Updated: 28 Sep, 2025 02:00 PM

प्रसंग उन दिनों का है जब मेजर ध्यानचंद के करिश्माई हॉकी खेल की हर जगह चर्चा हो रही थी। दुनिया के बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों में अगर भारत के किसी एक खिलाड़ी का नाम सबसे पहले सम्मान के साथ लिया जाता था तो वह मेजर ध्यानचंद ही थे।
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Major Dhyanchand Story: प्रसंग उन दिनों का है जब मेजर ध्यानचंद के करिश्माई हॉकी खेल की हर जगह चर्चा हो रही थी। दुनिया के बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों में अगर भारत के किसी एक खिलाड़ी का नाम सबसे पहले सम्मान के साथ लिया जाता था तो वह मेजर ध्यानचंद ही थे। वह भारत के एकमात्र ऐसे हॉकी खिलाड़ी रहे, जिन्होंने देश को लगातार तीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलाया और तीनों ओलंपिक में पदक जीतने वाली भारतीय टीम का नेतृत्व किया।

एक बार बर्लिन ओलंपिक में भारत और जर्मनी के बीच हॉकी का फाइनल खेला जाना था। लगातार बारिश होने के कारण मैच उस दिन नहीं हो सका। लेकिन उस मैच में लोगों की दिलचस्पी का आलम यह था कि अगले दिन जब मैच हुआ तब भी स्टेडियम खचाखच भरा था। उस समय वहां जर्मनी तानाशाह हिटलर भी उपस्थित था। मैदान की गीली जमीन पर मेजर ध्यानचंद बगैर जूते पहने खेले और उन्होंने जर्मनी को बुरी तरह पराजित किया। मैदान पर नंगे पैर दौड़ते ध्यानचंद का प्रदर्शन देखकर हिटलर जैसा तानाशाह भी उनका फैन बन गया। वह ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने के बदले अपनी सेना में उच्च पद देने का प्रस्ताव दे डाला।

ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता के साथ हिटलर का प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया कि भारत उनका देश है जिसे वह जान से ज्यादा चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वह आखिरी पल तक भारत के लिए ही खेलते रहेंगे। इसे ध्यानचंद के व्यक्तित्व का ही प्रभाव कहिए कि अपना प्रस्ताव ठुकराए जाने के बावजूद हिटलर उनसे नाराज नहीं हुआ। उसने उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ की उपाधि प्रदान की।
