Margashirsha Month: 1 महीने में पाएं तीर्थराज प्रयाग में 1000 साल निवास करने का पुण्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Nov, 2021 08:28 AM

margashirsha month

महीने में अन्नदान का अत्यधिक महत्व है। अन्न दान की परम्परा सनातन धर्म में मार्गशीर्ष मास से शुरू हुई इसलिए कहा गया है कि इस महीने में केवल अन्न का दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में

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Margashirsha Month 2021: महीने में अन्नदान का अत्यधिक महत्व है। अन्न दान की परम्परा सनातन धर्म में मार्गशीर्ष मास से शुरू हुई इसलिए कहा गया है कि इस महीने में केवल अन्न का दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में पंचांग के अनुसार हर महीने का अपना विशेष महत्व है। इसी तरह कार्तिक मास के बाद आने वाले मार्गशीर्ष महीने का विशेष महत्व है। इस महीने में विवाह आदि मांगलिक कार्य होते हैं, इसलिए इस महीने का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। यह महीना भगवान श्री कृष्ण का सबसे प्रिय मास माना जाता है क्योंकि इसी महीने में गीता जयंती महोत्सव का आयोजन होता है।

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इसी माह में मनाया जाता है गीता जयंती उत्सव
भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जो पूरे विश्व के लिए मार्गदर्शक और मानव जीवन के लिए प्रेरणा का स्रोत है। मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन अर्जुन ने गीता के उपदेशों को अपने भ्राता बंधुओं को सुनाया था इसलिए इस दिन से गीता जयंती महोत्सव मनाया जाता है इस साल 14 दिसम्बर को गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी पर्व है।

मार्गशीर्ष महीना हिन्दू धर्म का नौवां महीना है और 9 का अंक ज्योतिष विज्ञान के अनुसार पूर्ण माना जाता है इसलिए इस महीने का महत्व और अत्यधिक बढ़ जाता है। मार्गशीर्ष को अग्रहायण नाम भी दिया गया है। अग्रहायण शब्द आग्रहायणी नक्षत्र से जुड़ा है जो मृगशीर्ष या मृगशिरा का ही दूसरा नाम है। अग्रहायण को अगहन भी कहते हैं। इस वर्ष 20 नवम्बर से मार्गशीर्ष का महीना शुरू हो गया है जो 19 दिसम्बर पूर्णिमा तक चलेगा।

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विवाह पंचमी भी होगी इसी माह
वैदिक काल से मार्गशीर्ष महीने का विशेष महत्व रहा है। प्राचीन काल में मार्गशीर्ष से ही नववर्ष शुरू होने की परम्परा थी जो आगे चलकर बदल गई और विक्रम संवत से नव वर्ष शुरू होने लगा। इस साल 8 दिसम्बर को विवाह पंचमी है।

ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और माता सीता का स्वयंवर और विवाह संपन्न हुआ था इसीलिए हर वर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी मनाई जाती है। साथ ही शिवपुराण, रुद्रसंहिता, पार्वतीखंड के अनुसार सप्तर्षियों के समझाने से हिमवान ने शिव के साथ अपनी पुत्री का विवाह मार्गशीर्ष माह में तय किया था।

गणेश जी को उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मार्गशीर्ष महीने में ही प्राप्त हुई थीं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मासशून्य तिथियां हैं। मास शून्य तिथियों में मंगलकार्य करना निषिद्ध माना गया है।

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इस महीने में अन्न दान का महत्व
महाकाव्य महाभारत के अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार, जो मनुष्य मार्गशीर्ष महीने में एक समय भोजन करते हैं और अपना समय ईश्वर भक्ति में लगाते हैं और जरूरतमंदों को अन्न दान-भोजन आदि कराते हैं वे हमेशा रोग और पापों से मुक्त रहते हैं और मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

इस महीने में उपवास करने का विशेष महत्व है जो मनुष्य इस जन्म में इस पावन महीने में उपवास रखते हैं वे दूसरे जन्म में रोग रहित और बलवान होते हैं। स्कंद पुराण वैष्णव खंड में कहा गया है कि- जो मनुष्य रोजाना एक बार भोजन करके मार्गशीर्ष महीने में जीवन व्यतीत करता है और भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराता है, वे सभी रोगों और पापों से मुक्ति प्राप्त करता है।

शिवपुराण में कहा गया है कि मार्गशीर्ष महीने में अन्नदान का अत्यधिक महत्व है। अन्न दान की परंपरा सनातन धर्म में मार्गशीर्ष मास से शुरू हुई इसलिए कहा गया है कि इस महीने में केवल अन्न का दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष महीने में भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में रहने का अत्यधिक महत्व माना गया है और इस महीने यमुना जी के दर्शन करने से मनुष्य विष्णु लोक को प्राप्त करता है।

स्कन्द पुराण में स्वयं श्री भगवान सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा से कहते हैं कि तीर्थराज प्रयाग में एक हजार साल तक निवास करने से जो फल प्राप्त होता है, वह मथुरापुरी में केवल मार्गशीर्ष महीने में निवास करने से मिल जाता है। इस मास में विश्व देवताओं का पूजन किया जाता है पितरों की आत्मा शांति के लिए यह पूजन किया जाता है।

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