Nirjala Ekadashi: 31 मई को है निर्जला एकादशी, ये है महत्व और व्रत विधि

Edited By Updated: 27 May, 2023 07:38 AM

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निर्जला एकादशी व्रत अत्यधिक श्रम-साध्य होने के साथ-साथ, कष्ट एवं संयम साध्य भी है। यह एक शारीरिक परीक्षण का दिन भी है जब आप अपनी शारीरिक क्षमता का परीक्षण कर सकते हैं कि क्या आप भूखे-प्यासे एक दिन


Nirjala Ekadashi 2023: निर्जला एकादशी व्रत अत्यधिक श्रम-साध्य होने के साथ-साथ, कष्ट एवं संयम साध्य भी है। यह एक शारीरिक परीक्षण का दिन भी है जब आप अपनी शारीरिक क्षमता का परीक्षण कर सकते हैं कि क्या आप भूखे-प्यासे एक दिन संयम से निकाल सकते हैं ? आधुनिक युग और आने वाले समय में जल का अभाव रहेगा। जल की बचत करना भी सिखाता है यह पर्व।ऐसा व्रत आपातकाल में भी जीना सिखाता है। ये व्रत हमारे धर्म, संस्कृति और देश में किसी न किसी उद्देश्य से रखे गए हैं ताकि हम जीवन में किसी भी आपात स्थिति से निपट सकें। गर्मी से समाज के सभी वर्गों को राहत मिले इसलिए इन दिनों मीठे व ठंडे जल की छबीलें लगाने की प्रथा उत्तर भारत में सदियों से चली आ रही है। जहां जलाभाव है, वहां इसकी पूर्ति की जाए।
 
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इस साल निर्जला एकादशी 31 मई, 2023 को है। जेष्ठ की तपती गर्मी में ये पर्व आता है। इसी कारण हमारे सनातन धर्म में आज के दिन खरबूजे, पंखे, छतरियां, फल, जूते, अन्न, भरा हुआ जल कलश आदि दान करने का रिवाज है ताकि सबल समाज द्वारा, निर्बल और असहायों की सहायता हो।
 
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Nirjala Ekadashi vrat vidhi: निर्जला एकादशी व्रत विधि
व्रती को दशमी के दिन से ही नियमों का पालन आरंभ कर देना चाहिए। एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन ‘ओम नमो वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। प्रात: स्नान के बाद एक जल कलश को भर कर पूजा स्थान पर रख कर सफेद वस्त्र से ढक दें। ढक्कन पर चीनी या कोई मिष्ठान एवं दक्षिणा रख दें। ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें। लक्ष्मी कामना के लिए ‘लक्ष्मी सहस्त्र नाम’ का पाठ करते हुए लक्ष्मी जी के चित्र या मूर्ति पर लाल पुष्प अर्पित करें। सारा दिन बिना कुछ खाएं-पिएं, निर्जल-निराहार रह कर हरि नाम का स्मरण करना चाहिए।

रात्रि में भजन-कीर्तन करें। धरती पर विराम या शयन करें। यथाशक्ति ब्राह्मण अथवा जरूरतमंदों को यह कलश दान दें। द्वादशी के दिन तुलसी के पत्तों आदि से भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। पूजा-पाठ के बाद ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन करवा कर दान सहित विदा करना चाहिए। उसके पश्चात ही स्वयं भोजन करना चाहिए।
 
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