Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Oct, 2023 08:09 AM
एक बार एक बादशाह की बेगम बीमार पड़ गई। कई तरह के इलाज कराए, लेकिन कोई इलाज माफिक नहीं आ रहा था। अंत में एक बेहद पहुंचे हुए हकीम ने बताया कि यदि अमुक-अमुक लक्षणों
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Religious Katha: एक बार एक बादशाह की बेगम बीमार पड़ गई। कई तरह के इलाज कराए, लेकिन कोई इलाज माफिक नहीं आ रहा था। अंत में एक बेहद पहुंचे हुए हकीम ने बताया कि यदि अमुक-अमुक लक्षणों वाले आदमी का कलेजा कहीं से मिल जाए तो बीमारी से बचने की कुछ उम्मीद हो सकती है। बादशाह को अपनी बेगम से बहुत मोहब्बत थी। वैसा आदमी खोजने के लिए मुनादी करवा दी गई। चारों तरफ राज सेवक दौड़ा दिए गए। बादशाह रोज उनसे पूछता, हिदायतें देता फटकार लगाता कि वैसा आदमी अब तक क्यों नहीं मिला।
आखिर राजा के कर्मचारी एक लड़के को ले ही आए। उसके गरीब मां-बाप ने कुछ धन के एवज में अपने लख्ते-जिगर को राज कर्मचारियों को सौंप दिया। काजी ने फतवा दिया कि बादशाह की बेगम को बचाने के लिए किसी की जान लेना गुनाह नहीं है। लड़का बादशाह के सामने खड़ा था। हकीम अपनी तैयारी करके बैठ गए। जल्लाद ने तलवार उठाई। उस वक्त लड़का आसमान की तरफ देखकर हंस पड़ा। बादशाह ने इशारे से जल्लाद को रोका और लड़के से पूछा, “लड़के ! तू हंसा क्यों ?”
लड़का बोला, “मां-बाप जोकि संतान की रक्षा के लिए अपने प्राण दे देते हैं, उन्हीं ने मारे जाने के लिए बेच दिया।” काजी जो न्यायमूर्ति कहलाता है, उसने एक बेकसूर की हत्या का फतवा दे दिया। बादशाह जो प्रजा का रक्षक है, अपनी निर्दोष प्रजा के एक बालक की हत्या करवा रहा है।”
इसी असहाय अवस्था में पहुंचकर मैं दीन-दुनिया के मालिक की ओर देखकर हंसा, “ऐ मेरे मालिक! इस संसार की लीला तो देख ली, अब तेरी लीला देखनी है। जल्लाद की उठी हुई तलवार का तू क्या करेगा?”
“मुझे माफ कर बेटा ! यह तलवार अब फिर नहीं उठेगी।” बादशाह ने उससे क्षमा मांगी और उसे पर्याप्त धन-दौलत देकर वापस उसके मां-बाप के पास भिजवा दिया।