Sant Guru Kabir Das Jayanti: शास्त्रों से जानें, क्या सच में नाम का अवतार थे कबीर दास जी !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2025 07:29 AM

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Sant Guru Kabir Das Jayanti 2025: कबीरदास जयंती केवल एक संत के जन्म की तिथि नहीं है बल्कि परमब्रह्म के सगुण रूप के पृथ्वी पर अवतरित होने की तिथि है जैसा कि संतमत और उपनिषदों के गूढ़ संदर्भों से स्पष्ट होता है। यह वह दिन है जब अलख ने लख रूप धारण...

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Sant Guru Kabir Das Jayanti 2025: कबीरदास जयंती केवल एक संत के जन्म की तिथि नहीं है बल्कि परमब्रह्म के सगुण रूप के पृथ्वी पर अवतरित होने की तिथि है जैसा कि संतमत और उपनिषदों के गूढ़ संदर्भों से स्पष्ट होता है। यह वह दिन है जब अलख ने लख रूप धारण किया। बिना माता-पिता के केवल कृपा और करुणा से। कबीरदास जयंती के बारे में जो आमतौर पर बताया जाता है, वो मुख्यतः ऐतिहासिक और भक्ति परंपरा पर आधारित है। कबीरदास जी का जन्म काल मध्यकालीन भारत (लगभग 15वीं शताब्दी) में हुआ था।

Sant Guru Kabir Das Jayanti
संतमत में नाम की महिमा सर्वोपरि है और कबीर स्वयं नाम का अवतार माने जाते हैं। इस दृष्टि से यह जयंती नाम दीक्षा और आत्मबोध का उत्सव है। संतों के अनुसार कबीर साहिब लहर तमान (जलतरंग) से प्रकट हुए हैं। यह नारायण के क्षीर सागर से प्रकट रूप की वैदिक छवि का ही पुनरावृत्ति है।

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ऋग्वेद (10.4.7) और अथर्ववेद में अजन्मा परमेश्वर के रूप में एक ऐसी सत्ता का वर्णन है जो स्वयं जल में प्रकट होती है यह जल से प्रकट हुए कबीर साहेब की संत परंपरा से मिलती है।

श्वेताश्वतर उपनिषद (6.8) में वर्णित स्वयम्भू और अप्राकृत पुरुष की व्याख्या कबीरदास के रूप में की जाती है विशेषकर संत धर्मदास, गरीबदास और अन्य कबीर पंथियों की वाणी में।

कबीरा जल में प्रगटे, कमल खिल्यो वनमाहिं।
यह कथन शास्त्रीय जल योनि से प्रकट अवतार की अवधारणा से मेल खाता है, जो सामान्य मनुष्यों के जन्म से भिन्न है।

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Kabirdas Birthday and Importance of Jyeshtha Purnima कबीरदास का जन्मदिन और ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को वैदिक काल में अत्यंत शुभ माना गया है। यह विष्णु के वत्सरूप, चंद्रमा की पूर्णता और गुरु तत्व की वृद्धि से जुड़ी होती है। कबीरदास का जन्म इसी दिन होने से उन्हें साक्षात गुरु तत्त्व का अवतार माना जाता है। कबीर जी का जल से प्रकट होना, चंद्रमा और गुरु तत्व से सीधा संबंध रखता है। इस दिन को परब्रह्म गुरु के अवतरण दिवस के रूप में मानने की परंपरा, शास्त्रों की उस भावना से मेल खाती है, जहां गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी ऊपर बताया गया है।

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